त्रिपुण्ड त्रिकूट तिलकधारी रावण पूर्वजों की परिपाटी में रहा festival shayari in hindi,
त्रिपुण्ड त्रिकूट तिलकधारी रावण पूर्वजों की परिपाटी में रहा ,
अब तो बस टीका लगाना ही सियासी ज़ौक़ है ।
मर गया रावण समर में अग्निदग्धा जल रही ,
सीता की सी कथा व्यथा ज्यों की त्यों चलती रही ।
इंसानो में छुपा घूमता है शाम ओ सेहर ,
रावण भी कभी पुतलों में दहन होता है ।
कर रहा है स्वर्ण शासन हर धरा की धीज पर ,
है खड़ा व्याकुल सा रावण हर गली के मोड़ पर ।
ग्यानी सा ध्यानी नहीं धूर्त में नहीं मूरख ,
पर नारी के मोह में लंका बारी बुडवक ।
वरण में द्वेष विनाश का कारण ,
सीता हरण का क्लेश वंश को तारण ।
ब्राह्मण तपश्वी गज सा मनबल इन्द्र को भी मात दे ,
देव सुर गन्धर्व किन्नर दशानन से काँपते ।
दस सर धर के कोई रावण नहीं होता .
करतूत भी वैसी हो की सर झुकाये सामने लक्ष्मण खड़ा हो ज्ञान ले ।
पौराणिक क्विंदन्तियों से भी किरदार निकल आते हैं ,
राह चलते हज़ार रावण मिल जाते हैं ।
एक तीली में जहान को जलाने का हुनर ,
फिर तेरी मैय्यत में क्यों साज ओ सामान उठा लाये हैं ।
इस फेयर एंड हैण्डसम मुखड़े पर ना जाओ सोणियो ,
बिना दाढ़ी मूछ के भी इश्क़ में राँझा फ़क़ीर होते हैं ।
सरहदों की राह जोड़ते उम्रें गुज़र गयी ,
कुछ तार दिल से दिल को अनछुए से छू गए ।
हकीकत में रात बड़ी लम्बी थी ,
ख़्वाब आँखों में बसे सेहर कहीं दूर पलकों में खड़ी थी ।
काश मुमकिन होता नज़ारों का हकीकत में तब्दील हो जाना ,
हम ख्यालों के सदके आँखें नीलाम कर देते ।
हमें क्या बर्बाद करेगे अँधेरे ग़म ए गर्दिशों वाले ,
हम तो दिन के उजालों में अपना आशियाना तबाह किये हैं ।
शोर ग़ुल में रात का जब जश्न ये थम जायेगा ,
सुरमयी सा चाँद लेकर एक पहर फिर आएगा ।
घुट रही हैं साँसे सुनामी भीड़ में ,
मैं पर भी एक जहान तामीर करता रोज़ हूँ ।
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