दाग़ सीने में थे लोग क़फ़न धोते रहे dard shayari,
दाग़ सीने में थे लोग क़फ़न धोते रहे ,
आह भरती रही रूहें , मैय्यत में राज़ दफ़न होते रहे ।
दबा सकते हो मिटटी को मिटटी में तुम ,
मगर क़ब्रों से निकलती ताज़ी भाप छुपाओगे कैसे ।
दर्द ए दिल भी सुकून देता है ,
तेरे रुख़सार का तबस्सुम नूर बनकर मेरी आँखों में झिलमिलाता है ।
जीने के लिए एक काँधे का सहारा उम्र भर माँगते हैं लोग ,
पल भर की मैय्यत के चार कांधों में भी दर्द बाँट लेते हैं लोग ।
दर्द से दोस्ती ज़माने से बैर कर बैठा ,
तुझसे इश्क़ किया था या ख़ुदा ये बता मोहब्बत ही खता है क्या ।
दो नैना भोले भाले से दो नैना ऐसी चाल चले ,
दो नैना सीधे साधे से दो नैनो में हैं डूब मरे ।
यूँ जो उखड़े उखड़े रहते हैं आज कल ,
चमन उजड़े बहारें नदारद ,
फ़िज़ाएं गुलज़ार हो जाए वो जो बस एक बार कहकशां कर दें ।
बाद मुद्दतों के आज फिर वो याद आया ,
सुनहरी शाम वही सर से ढलकता पल्लू हाँथ में थामा आँचल का साया ।
तेरे ख़्वाब ब चश्म ए तर आते हैं अब भी ,
फ़क़त यादों का मौसम है गोया या तासीर ए मोहब्बत अब भी बाकी है ।
शिकश्त हो तेरी या तू किला फ़तेह कर ले कहीं ,
मोहब्बत का मारा क़ाफ़िर ही बनेगा सिपहसालार वहीं ।
हुकुमरानों से ठाठ थे उनके ,
हमने भी हँस के कह दिया दिल ही हारा है मियाँ माल ओ मिल्कियत से अभी भी कंगाल नहीं।
हमने सारे ख़्वाब गिरवी रख के दुनिया सजाई ,
वो गैर की महफ़िल में मिले सवाली बनकर ।
जल गए शाम होते ही हम चरागों की तरह ,
वो गुज़रे गलियों से हमारे पराये होकर ।
छलक जाए पैमाना शाकी ज़ाम भर इतना ,
ज़बान पे नाम न आये उसका मैं कुफ़ ओ क़ैफ़ियत में भी उसे याद करूँ जितना ।
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