दिल को ख़ुद की ख़बर नहीं होती romantic shayari,
दिल को ख़ुद की ख़बर नहीं होती ,
आज़ार ए इश्क़ की रफ़्तार बड़ी बेलग़ाम होती है ।
दम से उनके थी ज़िन्दगी मेरी,
बेपरवाह ज़माने ने आज़ार ए दिल का नूर ए नज़र भी छीन लिया ।
आज़ार ए दिल का बारहां हाल ए सुखन रहा ,
कुछ टीस रही दिल की कुछ कारवां ए बियावान रहा ।
रात की वीरानियाँ और आज़ार ए तन्हा दिल ,
टूटेगा हमदर्दियों का सेहर होने तक तिलिश्म ।
ये इश्क़ तिलिशमाती है ,
आज़ार ए इश्क़ की मौसम ए ज़र्द में भी नमी बाकी है ।
आज़ार ए इश्क़ की रफ़्तार बड़ी बेलग़ाम होती है ।
दम से उनके थी ज़िन्दगी मेरी ,
बेपरवाह ज़माने ने आज़ार ए दिल का नूर ए नज़र भी छीन लिया ।
देख कर मुस्कुरा देना वो दुश्मन ए यार का ,
फिर इश्क़ की ग़फ़लत का मारा क्यों दिल बेचारा आज है ।
जब भी आता है लब पर दिल ए नादाँ के क़ातिलों का कभी ज़िक़्र ए फ़िराक ,
लोग मुस्कुरा कर के तमाम मामलात भुला देते हैं ।
दिल के ज़ख्मों का न हिसाब करो नासेह ,
साद ओ ग़म का हर मसला मुस्कुरा के टाल देता है ।
कुफ्र ओ क़ैफ़ियत में तबीयत जैसी रही ,
मिजाज़ ए तर्बियत से आज़ार ए इश्क़ की ख़ैरियत लेते मिली ।
क़ब्र में सोये पड़े मुर्दों से क्या हाल ए ज़बानी हो ,
जो बच गए आज़ार ए इश्क़ की गिरफ़्तारी से ,
फन ए शायरी का हुंकार भर रहे हैं ।
देखना है ये मौसम ए हिज़्र आतिश ए शहर ख़ाक करेगा ,
या दिलों का राज़ ए गुल अंजुमन गुलज़ार करेगा ।
सोचके जज़्बात बयान होते हैं ,
इश्क़ गर दिल में हो तो वादिये गुल भी खिलखिला के हँसते हैं ।
दो कदम चल के रुक सी जाती है ,
तुझको सोच के फिर आगे निकल जाती है ।
सोचता हूँ ऐ मेरी जान ए ग़ज़ल क्या लिखूँ ,
मंज़िल ए मक़सूद हमराज़ हमसफ़र हमनवां लिखूँ ।
मौज ए साहिलों से न लहरों का तक़ाज़ा पूछो ,
कुछ आई आके लौट गयी कुछ टकरा के पत्थरों से बिखर जाती हैं ।
pix taken by google ,