दीदा ए यार की ख़ातिर फ़लक के चाँद तारों में डूबे रहना birthday wishes ,
दीदा ए यार की ख़ातिर फ़लक के चाँद तारों में डूबे रहना ,
ज़मीनी समंदर की गहराइयाँ क्या कम थी इश्क़ में गोतों के लिए ।
शायरों की महफ़िल में चाँद तारों की बात होती है ,
ख्यालों में मेहबूब सजते हैं फ़लक पर शब् ए बारात होती है ।
डूब कर मरते तो इश्क़ की गहराइयों का पता चलता ,
फलक के चाँद तारों को जान ए जोखिम क्या कम है ।
तेरे फ़लक पर दो दो आफताब होंगे ,
यहां एक चाँद सीधा सादा सम्हाला नहीं जाता ।
फ़लक पर जलवा सजा के रखे हैं ,
सुबह सुबह सर्द की ठिठुरन से यहां रजाई के बाहर मुह निकाला नहीं जाता ।
शाम ढलते ही तेरा शर्माना ,
फ़िज़ा की मौजों से बगावत सा लगता है ।
सुबह को नूरानी चेहरे की दमकती लाली ,
रात चाँद तारों के दामन में गुल खिला होगा ।
शब् ए फ़ुर्क़त की तन्हाई वो दर्द भरे नगमे ,
ये सोने नहीं देती वो रोने नहीं देते ।
गीले गीले ख़्वाबों को सुखाने की ज़िद ,
हाँथों हाँथों में सारी रात फिसल जाती है ।
सर्द रातों में झुलसती यादें , गीले तकिये को जला देती हैं ।
तेरी बर्क़ सी बातें हाल ए दिल रेज़ा रेज़ा ,
तेरी नज़रों से छलक जाता है अंदाज़ ए लहज़ा तेरा ।
हिज्र ए तन्हाइयों में कितना जला होगा भीतर तक ,
बर्क़ से आदम ए बू तक नहीं आती ।
नाज़ुक ख़्याली में सारे ज़माने की नैमतें क्या कम थीं ,
जो अपनी मोहब्बत का भी बर्क़ मुझको ही उढा डाला ।
ज़र्रे ज़र्रे को मोहब्बत करके जहान को बर्क़ करता ,
जो मैं ज़िंदा होता ज़माने में आब ओ हवा की हिफाज़त करता ।
बर्क़ बदलें तो क्या तहरीरें बदल जाएंगी ,
हर्फ़ दर हर्फ़ अब भी मोहब्बत ही लिखा रहता है ।
गुलपोश नगीने में छुपे एक गुल की झलक ,
राज़ ए दिल बर्क़ से बाहर भी निकलते होंगे ।
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