दुल्हन है हिंदी अल्फ़ाज़ ए उर्दू सिंगार किया करते हैं romantic shayari,
दुल्हन है हिंदी अल्फ़ाज़ ए उर्दू सिंगार किया करते हैं ,
जब नज़ाक़त से उठती है हिंदी उर्दू लफ्ज़ थाम लिया करते हैं ।
सोचता हूँ ज़माने में जो वो नूर दिखा करता है ,
वो तेरा खुदा है या मेरा ख़ुदा जो नशीहत ए अमन का पयाम दिया करता है ।
वज़ीफ़े मिलेंगे और भी उम्दाह ,
उम्र ए दराज़ में पड़े कुछ सिक्कों सी ही ज़िन्दगी चल निकली है ।
पहले जो चलती थी हवाएँ इतनी सर्द न थी ,
खुश्क था पहले भी मौसम मगर ज़मीर इतना गर्द न था ।
पगडण्डियों में गिरते पड़ते माँ बाप के दरख़्त ही सहारे हुआ करते हैं ,
बच्चे होते हैं कहाँ वो तो विदेशों में पैसे कमा रहे होते हैं ।
कौन किसका हुआ ज़माने में ,
रास्ते में वफ़ा ए इश्क़ के मारे पड़े हैं ढेरों ।
चाँद तन्हा रात भर जागता क्यूँ है ,
कहीं ये भी बेवक़ूफ़ मेरी तरह दीवाना तो नहीं ।
बात मुलाक़ात की लम्बी खिंचे न खिंचे ,
रात बहुत लम्बी होती है जुदाई वाली ।
तेरी रूख़्सती के बाद दर ओ दीवार तेरे तलबग़ार ,
कैलेन्डर का बदला नहीं पन्ना तारीख़ भी वहीँ पर जैसे उलटी खड़ी है ।
उधर डोली का तेरे उठना इधर जनाज़े का विदा होना ,
तारीख़ थी मुक़र्रर क्या तेरा जुदा होना क्या मेरा फनाह होना ।
सबको पद की लोलुपता ईमान पड़ा सड़ जाता है ,
सत्य खटाता दूर तलक असत्य छणभंगुर हो जाता है ।
उनकी नज़रों ने शहर भर को दीवाना बना रखा था ,
और हम बेवक़ूफ़ बने फिर भी इश्क़ करते रहे ।
शहर में कोई शख़्स मुझे ऐसा बताओ यारों ,
जो इस हश्र ए ज़िन्दगी से तबाह न हो ।
मुझको हर शाम का मिजाज़ बता देता है ,
आज तेरी किस मौसम में सवारी होगी ।
सियासत में हमने ज़िन्दों को दफ़न होते देखा है ,
यहाँ मुर्दों को कफ़न नहीं मिलते ये तो आम बात है ।
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