दो वक़्त की रोटी कभी दो वक़्त के लाले alfaaz shayari ,

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दो वक़्त की रोटी कभी दो वक़्त के लाले alfaaz shayari ,
दो वक़्त की रोटी कभी दो वक़्त के लाले alfaaz shayari ,

दो वक़्त की रोटी कभी दो वक़्त के लाले alfaaz shayari ,

दो वक़्त की रोटी कभी दो वक़्त के लाले ,

गरीब की तक़दीर में क्या बोसा ए मोहब्बत क्या आरज़ू ए निवाले

 

इस तरह ज़मीर से रूह ओ जान में बसा है तू ,

जिस तरह मेरा हुब्ब ए वतन मेरा ख़ुदा है तू ।

 

घुस जाते हैं झरोखों से दस्तक दिए बगैर ,

दिल में रहने वाले मेहमान कुछ बेईमान हुआ करते हैं ।

hindi shayari

आफताब ए हुश्न को बेख़ौफ़ लपकने की जुर्रत ,

मौसमी सर्द हवाएं कनपटी झांझर कर रही हैं जैसे ।

 

अब तो बोसा ए गुल से रात कटती है ,

ख्यालों को तेरे तकिये के नीचे रख कर ।

 

कयामतों के बाद बोसा ए मोहब्बत का वादा नहीं करते ,

गोया जो कुछ भी हो यहां आज अभी हो ।

 

कितने मुद्दे हैं मेरे जज़्बों में ,

बस एक बोसा ए हुश्न का कोई जलवा ही नहीं ।

 

नज़र जमा के रखी थी झरते लफ़्ज़ों पर ,

जाने वो क्या समझे की कीक मार कर भरी महफ़िल से भाग गए ।

 

रात की तन्हाइयों के पहलू से सुबह के ओस की शबनमी बूंदों का बोसा लेने,

तह ए दिल की हसरतें तमाम चलीं ।

 

नर्म लहज़े से छेड़ती सरगम ,

झीने आँचल में कई तूफ़ान सजा रखी हैं ।

literature poetry 

जिस्मो की नुमाइश पर सारा ज़माना खड़ा है ,

दिल के जज़्बों का कहीं कोई खरीदार नहीं ।

 

बारिश की भीगी दीवारें तो सूख जाएगी सूरज की तपिश से ,

ग़म ए उल्फत जो भीतर हो दिल की कभी सीलन नहीं जाती।

 

ज़माने की रवायत में था दिल तोडना ,

हम कांच की तस्वीर में खोट ढूढते रहे ।

 

शहर भर के थे जो कभी नूर ए नज़र ,

आजकल हमारे इश्क़ का दाग दामन में छुपाये फिरते हैं ।

 

चढ़ रही है रात हिजाबों वाली ,

आज फिर कोई चाँद फलक पर क़यामत बनके नज़र आएगा ।

sad shayari 

बेबाक तकती है नज़र खिड़की के झरोखों से ,

जोरों की मोहब्बत है या खाली मोहब्बत ए एहसास है ।

pix taken by google