दौर ए उल्फ़त का आलम अजीब होता है one line thoughts on life in hindi,
दौर ए उल्फ़त का आलम अजीब होता है ,
सर्द में जलता है और एहसास ए लम्स की गर्मियों से पिघलता है ।
ख्यालों के पैमाने छलक जाते हैं ,
जब भी बेमौसम सी तेरी यादें बरस जाती है।
हादसा टल गया होता जाम ए मैकशी के बाद ,
गोया पैमाना न बिखर जाता यार की जुस्तजू के साथ ।
ख़ुश हो लेता हूँ रक़ीबों का चेहरा पढ़कर ,
हो सकता है शहर की वीरानियों में कोई गुनहगार ही न हो ।
ज़मीन का एक ज़र्रा बचा के रखना ,
ऊंचे आसमानो में रात की बसर नहीं होती है ।
क्या हम ही दौर ए इश्क़ से गुज़रे थे ज़ालिम ,
हर शख्स ने शहर के जज़्बा ए नुख्ताचीनी को दिल से लगा लिया ।
नाहक में बदनाम है फिराक ए गुल ,
सेज़ से लेकर मैय्यत तक बस उसी का खामियाजा है ।
यूँ नहीं की याद अब नहीं आती , रात ख्यालों में गुज़र जाती है ,
दिन तेरे कूचे के नाम ओ निशान तलाश करता है ।
एक क़फ़स का साया सी है हर ज़िन्दगी ,
आ मेरे मौला मुझे आगोश में सुला ।
इतनी नफ़रत भी न थी की अदावतें अदा कर लेते ,
बस ख्याल ए जुस्तजू थी उनकी हम कैसे मोहब्बत कह देते ।
गुनाह ए इश्क़ के मुजरिम का हाल मत पूछ ,
बैठकर मैखानो में भी मेहबूब ए इबादत होती है ।
हाल अपना ग़ालिब से कम नहीं ,
हर सदा ए दिल में बस दुआ ए इश्क़ होती है ।
नज़र ए इनायत थी या था रहम ओ करम ,
हम इश्क़ के मारे थे एहसान को मोहब्बत समझ गए ।
कटीली झाड़ियों के पीछे सरहदें बन गयी ,
बहके गुलों के दम पर मज़हबी टोलियां बन गयी ।
बन गए कुनबे पे कुनबे चश्म ए तर के,
फिर उन्ही अपनों के दम पर अपनों के खून की नदियाँ बन गयीं ।
है अगर हैवानियत ही सबका जूनून ,
फिर इसी तेवर में जीना हो चाहे रूबरू खुद के चेहरे से तस्वीरें जुदा ।
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