नज़र ए फ़ानी से क़त्ल करते हैं 2line attitude shayri,
नज़र ए फ़ानी से क़त्ल करते हैं ,
गुलपोश ए गुल बेख़्याली वाले ।
कहते हैं मैक़दे में इबादत नहीं होती ,
बिना जाम छलकाए भी तो मोहब्बत नहीं होती ।
ज़रुरत होगी तभी ग़ैरत से देखा है दुश्मन ए यार अपना ,
बड़ी गरूरियत ओ नाज़ था जिसको कभी अपनी बुलंदी पर ।
इतनी क़ूबत दे मदद करने की या मौला ,
कभी कोई फ़क़ीर दर से मेरे खाली हाँथ न जाए ।
ज़रुरत मंदों की मदद करता है ,
फ़क़ीर मुफ्लिशी में भी खुद की क़ूबत देखे बग़ैर ।
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दो निवाले थे तेरे हक़ के अदा कर आया ,
तू जो मागे तो पूरी थाल तुझे दे दूँगा ।
न दे इमदाद कुछ तो बोल दे अच्छे मुँह से ,
मुफ्लिशी में भी करोड़ों का मुनाफ़ा होगा ।
यतीमो में बाँटने से बरक़त होती है ,
किसी को दो निवाले खिलाने से खुद की रहमत का खज़ाना मिलता है ।
दर पे आया है तेरे आज सवाली बनकर ,
न झुकाया था कभी सर जो किसी की सज़दे में ।
गर्म साँसों को साँसों की जुस्तजू ऐसे ,
सर्द आदम ए ख़ाक ज़मीन में दफ़न करने की जद्दोज़हद हो जैसे ।
ख़ुशामदी के पर्चे जितने भरने थे भर दिए हमने ,
अब कलम ए हिमायती को जो चाहे बागी समझे ।
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क़त्ल खाने को बाजार करते हैं ,
हुश्न वाले नज़रों से मोहब्बतों की नमाज़ें अदा करने का कारोबार किया करते हैं ।
जिसको तलब हो मुजस्सिम ए हयात की वो तलाश करे ,
हम तो इब्न ए इंसान हैं इंसानो में बसर कर लेंगे ।
दो चार जाम के बाद कभी देखी हैं सूरत ए फ़ानी ,
क्या पण्डित क़ाज़ी मौलवी क्या बूढ़े जनानी ।
तेरी एक फ़ानी नज़र के सदके ,
ता उम्र ज़ख़्मी जिगर हम भी रखते हैं ।
उड़ती फ़िज़ाओं में बदलते तूफानी तेवर ,
गरज़ चुके हो बहुत तेज़ तो कभी अब्र ए बारिश भी कर दो ।
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