नश्तर चुभो रही है सरगोशियों में रात romantic shayari ,
नश्तर चुभो रही है सरगोशियों में रात ,
कुछ बात शबनमी सी कुछ दाग़ ए सुखन की बात ।
बंज़र ज़मीनो में हमने सुख़नवर बोये ,
सैयाद कहते हैं सब्ज़ बागों में उनका कब्ज़ा है ।
तुम्हारा तो हमसे नाम ओ निशाँ तक का वास्ता नहीं ,
एक हम ही हैं जो ताल्लुको की खींचातानी मचाये रहते हैं ।
बावजूद ए इश्क़ के जीना ग़वारा न हुआ ,
एक तेरे सिवा दिल ए नादान की कोई हशरत भी न थी ।
गुज़रे वक़्त की तहरीरों से दहल जाता है ,
हसरत ए नाकाम को साकार करने के लिए दिल अब भी मचल जाता है ।
न घर का रहा न शहर ए आम का रहा ,
तेरे इश्क़ के बाद दिल बस तेरी हसरत ए ख़ास का रहा ।
गिन गिन के ले रहा है बदला बदल बदल ,
एक नाम गुमसुदी का तेरा बाब ए सुखन ।
मेरी तन्हाइयों को बर्बादियों का इल्ज़ाम न दे ,
ये सब तेरी मोहब्बतों का सगूफ़ा है ।
दो चार जुमले और हो जाएँ मोहब्बतों वाले ,
गोया फिर सोचेगे इस रात की सेहर हो न हो ।
मेरे नक़्श ए क़दम पर जो चलती रात ,
तेरे कदमो की आहटों से पहले ही सेहर कर देते ।
हमें तो तेरी नज़रों की अदावतों ने गुमराह किया ,
गोया हम तो तेरी मोहब्बतों के क़ाबिल ही न थे ।
अदाएं खुद बा खुद आ जाएगी हसीनाओं वाली ,
तू हमारी गलियों का बस एक बार मुआयना कर ले ।
कभी धड़कनो से पूछो राब्ता दिल का ,
कहती हैं बस तेरे आने से धड़कती हैं दानिश ।
मेरे शहर में मुर्दों पर सियासत होती है दानिश ,
तू बचा सके जो दामन तो अभी से किनारा कर ले ।
मज़बूर कर देता है लौट कर बचपन में आना ,
वो माँ के आँचल का साया वो माँ के हाँथ का खाना ।
तेरे अपने किस्से तेरे अपने फशाने में उलझा है तू ,
मुझे इस उम्र में भी मेरे बचपन से फुर्शत नहीं मिलती ।
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