नस्तर चुभो रही है ज़ालिम तेरी निगाह bewafa shayari,
नस्तर चुभो रही है ज़ालिम तेरी निगाह ,
नासूर सवालों के लाज़िम नहीं जवाब ।
वादों की दलीलों के यूँ दायरे में न जा ,
चेहरे बदल रहा है हर रोज़ आइना नया नया ।
लिहाफ बदल देता है हर गुनाह के बाद मेरा खुदा ,
गम ए गर्दिश में भी मेरी ज़ीस्त दाग़दार होने नहीं देता ।
हम तो मशरूफ़ थे मशहूर उन्हें करने में ,
फिर हादसा ऐसा हुआ की नामचीन हम भी होते गए ।
ज़िन्दगी तो ख़ुद दर्द का सौदा है ,
इन बर्बादियों का जश्न मनाऊँ कैसे ।
दर्द ए दिल के छालों का सफक को रोना कैसा ,
रात भर जलते रहे दरीचे में अँधेरा बनकर ।
बिक गए सब ख्वाब दिल की तलहटी गहरायी में ,
पुतलियाँ बस आँख की पटपर की ज्वाला सेकती ।
दर ओ दीवार भी खामोश नहीं ,
तेरी तन्हाइयों में बात करते हैं ।
अब अगर दिल में मैं नहीं जलता ,
तद्फीन ही हुआ हूँ मज़ारों में अभी बुझा तो नहीं ।
बिकने को बिक गए ज़र्द पत्ते बहार के ,
शफ़्फ़ाफ़ ए रंग ओ बू का ख़रीदार न मिला ।
मासूम निगाहों का ज़माने में ख़रीदार न था ,
नफरतों के दौर में मोहब्बतों का बाज़ार न था ।
कभी हाल ए दिल का मुआयना करके देखो ,
वीरानियों में दौर ए उल्फ़त की सदायें पाओगे ।
गिन गिन के ले रही हैं नज़रें तेरी हिसाब ,
कुछ हादसे से पहले कुछ मोहब्बतों के बाद ।
गुलों की पेचीदगी में उलझे हैं चमन के रक़्स सारे ,
कभी खुश्बुओं में कभी अक़्स में तकते नक़्स सारे ।
उन आँखों में अब आँसू बचे ही नहीं ,
जिन आँखों ने पत्थरों से पसीना निकलते देखा है ।
कितना लुटा लुटा है शहर मेरे साथ ,
चलता तो है तन्हा तन्हा सफ़र मेरा ।
सुने सुने से लगते हैं किसी ज़िरह की तरह ,
खोये खोये हो ज़माने में शहर की गुफ़्तगू बनकर ।
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