पतंगें भीग जाती है अश्क़ों की बारिश में dosti shayari,
पतंगें भीग जाती है अश्क़ों की बारिश में ,
गोया आसमान ने मेरे जमाल ए यार का हाल ए दिल सुनाया होगा ।
मोहब्बत नहीं अश्क़ों का तगादा करने ,
वो हर शाम मेरी नज़रों में ठहर जाता है ।
छतों से तोड़ लेता था डोर उड़ती पतंगों की ,
आस्मां पर दीवारें बन गयी जब से घुटन महसूस होती है ।
सियासत घुल नहीं पायी मेरे नाज़ुक ख़्याली में ,
गुलों के अर्क को बस बर्क़ में महफूज़ ही रखो ।
लफ्ज़ अश्क़ों में भिगो नहीं सकता ,
बस सर्द लहज़े हैं गुफ़्तगू ए अदायगी को समझो ।
मुमकिन है वही आँखें अश्क़ सबसे ज़्यादा बहाएँ ,
जिसकी शान ए महफ़िल में तूने भी गीत गुनगुनाये थे कभी ।
गर बुराइयां हैं मुझमे तो होगी अच्छाइयाँ भी ,
इंसान को खुद अपने फैसले का मुंसिफ भी बनना चाहिए ।
दर्द ए मुंसिफ से ज़माने में जो बचा होगा ,
हीर राँझा रंक राजा पीर फ़क़ीर न ख़ुदा होगा ।
अभी गम ए उल्फत की वीरानियों में तल्खियाँ उड़ाऊँगा ,
मैं अपने मुक़द्दर का आप मुंसिफ हूँ ।
जो बच गया वो ख़ुदा हो गया ,
गोया इन आँखों के काले जादू ने शब् ए महताब काला करके छोड़ा है ।
चांदनी रात है हिज़ाब में न नज़र लग जाए ,
गोया काजल का काला टीका लगा कर बच बचा के चलो ।
दो चश्म मीठे थे वो भी खारे हो गए ,
अब खुश शहर भर में कोई भी बचा नहीं ।
शहर भर में पहले से धुआँ कम था क्या ,
जो अब एक और दिल जला के रखा है ।
फ़िज़ाओं में न ज़हर घोलने की बात करो ,
शहर का हर एक शख्स पहले से ही ज़हरीला है ।
लोग नमक खाके हक़ अदा नहीं करते ,
गड़े मुर्दे क्या ख़ाक नमक से गल पाएँगे ।
सम्हाल ले अपने नज़रिये को ,
लोग नमक निम्बू मिर्ची लगा कर इन्सानियत भी चाट खाते हैं ।
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