परिंदों ने ज़बान सीख ली थी चैन ओ अमन वाली hindi shayari,
परिंदों ने ज़बान सीख ली थी चैन ओ अमन वाली ,
ज़माने ने पर काट दिए सैय्यादियों का हवाला देकर के ।
नज़र ने अश्क़ों को जिगर का रास्ता दिखा दिया ,
गोया खिज़ा के मौसम में दिलों के फशल ए गुल दर्द की सीलन से बर्बाद हो जाते ।
नज़रों में समंदर छुपा रखा था ग़म को ख़ुदा करके ,
अश्क़ों का दरिया बहा दिया दिल को समंदर कहके ।
इश्क़ है गुनाह , गुनाह करते रहिये ,
दिल टूटे या जुड़े सबक लेते रहिये ।
दिखता है बेज़बानों पर भी इंसानी सोहबत का असर ,
पर जानवर उतने नहीं हिंसक जितना है इब्न ए आदम अब का ।
सबक बहुत हमने सीखा सत्य अहिंसा कर्तव्यनिष्ठा वाले ,
अपितु धरा पर पाँव अडिग हैं पथ पर नहीं पीछे हटने वाला ।
ज़िन्दगी कुछ भी हो कैसी भी हो ,
बहरहाल सपने हसीन दिखाती है ।
शब् ओ रोज़ इश्क़ की सोहबत में रहकर ,
जमाल ए यार की भी रंगत निख़र गयी ।
बादाकशी से तौबा करके ,
लोग कैसे चले जाते हैं हुश्न ओ इश्क़ का शब् ओ रोज़ सज़दा करने ।
इंसान को इंसान से थी नफ़रत बस आदम ए खून का प्यासा बस बेतहाशा रहा ,
आदम ओ आदम की वेह्शत का तमाशा शब् ओ रोज़ कुछ ज़रा सा रहा ।
ग़म ए उल्फ़त और तन्हाई ,
शब् ओ रोज़ इंसान को बस ज़िंदा होने का एहसास कराये रखती है ।
कोई इश्क़ के फांदे में फंसा कोई इश्क़ में शूली चढ़ गया ,
जो बच गए आफत ए उल्फ़त से इसका तमाशा बन गया ।
हर रोज़ तमाशा हरसू ही हुआ करता है ,
चाँद चलता है फ़लक पर और लहरों का नज़ारा ख़ूबरू हुआ करता है ।
ज़बान ज़बान पर नाम था अहल ए सियासी था ,
जो मुलाज़िम था कहीं और काम कहीं और किया करता था खलासी का ।
एक बग़ावत सी है हमारे दिल में सियासत के वास्ते ,
कुछ अज़ाब सा न टपक जाए मुखारबिंद से ज़राफ़त के रास्ते ।
वतन की सरपरस्ती में आगे बढ़ गए जो कदम ,
वज़ूद ए दुश्मन के सीने का भी देखेंगे हम ।
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