पाज़ेब की रुन झुन कभी उसके क़दमों की आहट से मेरा आंगन मचलता था sad poetry in urdu 2 lines ,
पाज़ेब की रुन झुन कभी उसके क़दमों की आहट से मेरा आंगन मचलता था ,
अब है हर एक रक़्स सूना दिलों की धड़कनो तक में कोई थिरकन नहीं होती ।
कितना कुछ था लिखने के लिए बात हासिये पर जा अटकी ,
दिल का साज़ ओ सामान सजा रखा रहा और महफ़िलें जवान होती रही ।
चाक ए जिगर को सिलने में हमने उम्रें गुज़ार दी,
खुद का नशेमन बसा के भी यहां खुशहाल कौन है ।
चश्म ए चरागों में अश्क़ों की नुमाईस मत करना ,
ग़ैर के ज़ख्मों पर मरहम लगाने को यहां बेताब कौन है ।
इश्क़ की फितरत अजीब है रूबरू ए यार ही खुमारी है ,
ग़म ए फुरक़त की बात मत पूछो उसकी तो खुद से भी राज़दारी है।
दीन ओ मज़हब की बात हो ग़र जाम ए मैकशी के बाद ,
सारे मसले ही सुलझ जाए बेखुदी के बाद ।
शायर बदनाम सा मैं , शायरी बदनाम सी मेरी ।
भँवरे को शिकायत है गुलों की रंगत चुरा कर के ग़ज़ल लिखता हूँ ।
कलियों को शिकायत है हर कली पर ज़राफ़त की नज़र रखता हूँ ।
फ़िज़ाओं को अदावत है खुशबुओं पर करम करता हूँ ।
इश्क़ से अदावत है हर ग़ज़ल हुश्न के नूर ए नज़र होती है ।
हिदायत ए ख़ास की परवाह किये बगैर ,
मैं अंजुमन में निकल आया हूँ , हिमायती बनकर फ़िज़ा में फैली रंग ओ बू की पैरवी करने ।
गुंचा गुंचा गुलों के घायल हैं ये कैसे खार निकले हैं ,
चमन की हिफाज़त के वास्ते ।
वो कहते हैं मेरे लहज़े में तरावट है ,
वादी ए गुल से चुराई शबनम की बनावट है ।
सिसकी कली कोई खिल के कचनार बनी ,
शायर को शायरी से इश्क़ होता गया ।
शेर ओ सुख़न का अर्क़ बनता गया ,
इसी इत्र ए इश्क़ के रंग ओ बू से सफहों का मर्तबान भरता गया ।
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