फटे पाँव की बेवाईयां न जलते सूरज का ख्याल dard shayari,
फटे पाँव की बेवाईयां न जलते सूरज का ख्याल ,
जाने किस मिटटी से ख़ुदा ने तामीर ए मज़दूर किया ।
गर्मी ए ख़ाक में मिल जाए वो जज़्बात नहीं ,
इश्क़ वो सै है जलते रस्तों से गुज़र जाए लब पर आह नहीं ।
मौसम ए हिज़्र में हो या तन्हाई में ,
आज कल चाँद सारी रात जला करता है अंगनाई में ।
दिल खोल के रोता है भीगे आँचल के तले ,
फिर गर्मी में सुखा लेता है ग़मों की सीलन ।
पिघल रही हैं रुधिर की श्वेत रक्त कणिकाएँ ,
रेज़ा रेज़ा गुलों का मौसम ए तपिस से जलने को है ।
सब्ज़ बागों से न पूछो क्या है खिज़ा ए मौसम का हाल ,
जल गए सूखी डाली के पत्ते बच गया अंजुमन बहरहाल ।
मत पूछ हिज्र की रातों का इंतज़ार ए ख्याल ,
बुझे बुझे से चश्म ए चरागों से भी पसीना निकल आता है ।
खिज़ा ए मौसम में अंजुमन का हाल खस्ता है ,
गुंचा ए गुल से एक एक फूल ज़मीदोह होके बिखरा है ।
ख़ाक ए सुपुर्दगी में सुकून नहीं मुर्दों को ,
क़ब्र के फूलों को आँसू कब तलक ज़िंदा रख पाएंगे ।
चरागों की फ़ितरत में बस जलना है ,
फिर क्यों मौसम ए हिज्र कभी कभी विसाल ए यार की चाहत में बवाल मचाये रहते हैं ।
रूवां रुवां सा है धुंआ धुंआ सा है सख्त सीने में ,
सुराख ढूंढती हैं साँसे ज़ब्त सीने में ।
तन्हा रातों का कोई गुनहगार न था ,
जिगर में दब गयीं न जाने आहें कितनी ।
लबों पर आह नहीं जाने कितने बिखरे हैं तेरे कूचे पर ,
कितने हांथों में अपना ज़ख़्मी दिल सम्हाल रखे हैं ।
घुट रही थी आह ज़ब्त सीने में ,
रूबरू ए यार हुआ तो तन्हा दिल को सुकून आया ।
मत पूछ बुनियाद में दबे बेज़बान पत्थरों का हाल ,
जाने कितने मज़लूमो की आह को सुना होगा ।
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