फ़ितरतन दिल तो बस आवारा है romantic shayari,
फ़ितरतन दिल तो बस आवारा है ,
कब किसी रश्म ओ रिवाज़ कब किसी कुनबे में रुक के ठहरा हैं ।
शब् ए गुल रंग ओ बू और शर्म ,
कब किसी बर्क़ ओ चिलमन के मोहताज रहे हैं ।
गुलों के लब पर तबस्सुम न रंग ओ बू न नमी है ,
लगता है खून ए ज़र्द ज़मीन पर भी इंसानो की कमी है ।
सूखे दरख्तों पर तख़्तियाँ लटकाने से कुछ नहीं होता ,
बात बनती है दिलों के आईने में आरसी उतरने के बाद ।
तमाम उम्रें सुफेद कर दी इंसानियत की राह पर ,
मुशाफिर हज़ार थे मगर कोई इंसान नहीं मिला ।
छोटे से दिल की हसरतें बड़ी बड़ी ,
हसरतों पर इंसानियत का जामा उढ़ाऊँ तो दिल ए नादान को समझाऊँ कैसे ।
वो मेरी मुस्कुराहटों से दिन संवार लेता है ,
मैं वादी ए गुल के ज़र्द पत्तों से अपना आशियाना सजाऊँ कैसे ।
आस्मां पर छत नहीं ज़मीनी बात होती है ,
रसूकदारों के लिए सियासियों की विदेशी मुलाक़ात होती है ।
यहां ज़मीनी दल्लों से देश चलता है ,
अवाम के हिस्से में दो वक़्त का लुक़मा ही नसीब होता है ।
कोई तो हो जो गुमसुदगी में नाम ले ,
यहां तो लोग बस नामचीनों को याद किया करते हैं ।
जश्न बस एक रात का है ग़ालिब ,
आगे ग़म की अँधेरी रात और गहरी ख़ामोशी है ।
इल्म है अवाम के बच्चे बच्चे को ,
ये उज्जवल सियासी गंगधार आगे गंदे नाले में मिलती है ।
तुम लफ़्ज़ों को सुमारी में पिरोते हो ऐसे ,
ग़म ए गर्दिश में एहसाशों की क़तार खड़ी कर रहे हो जैसे ।
तुमको परवाह अपने दिल ए नाज़ुक की पड़ी है ,
यहां दिल ए नादाँ पर सारे क़ायनात की आफ़त आन पड़ी है ।
सारा आलम रुआं रुआं सा है ,
सारे आलम में सोरीदगी सी है ।
ये ज़ख्म हैं मोहब्बतों के इंसानियत से सम्हाले रखो ,
ग़म ए गर्दिश की तन्हाइयों में नासूर ही राहत देगे ।
उफ़ ये नाज़ ओ नखरे उस पर जनकल्याण की भावना ,
गोया हम तो इश्क़ की विडम्बनाओं में ही ख़ानाबदोश रह गए ।
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