बर्बादी ए जश्न मनाने का शौक़ था dard shayari ,
बर्बादी ए जश्न मनाने का शौक़ था ,
हम दोनी खाली जाम लिए सारी रात गुनगुनाते रहे ।
आदम ए ख़ुल्द की आदम से जंग होने को है ,
अभी तुम घर आये नहीं की शहर भर में सेहर होने को है ।
कौन किस पर फ़नाह हुआ कितना,
गर्म मिटटी से भी आँसू छुपा लेते हैं लोग ।
वो एक नरम लहज़ा तलाश करता है ,
जिसके आदत में ग़ज़ब की सख़्ती है ।
जो कभी सल्तनत ए वाल्देन के थे वारिश ,
वो सहजादे अब खानाखुराकी की ख़ातिर ज़माने भर की ख़ाक छानते हैं ।
दीवारों में बस तस्वीरें लटकती हैं ,
सारे महापुरुष तो बस संसद में दिखते हैं ।
हाल ये है की मत पूछिये सनम ,
बर्बादी ए इश्क़ की दावतें उड़ा उड़ा कर के हवा पानी के रास्तों से मटर पनीर के टुकड़े निकल रहे ।
दिलों का टूटना जुड़ना तो बस बहाना है ,
शहर ए आदम को दिल लगाने की बुरी आदत है ।
महँगे महँगे लिबास की ख़ातिर ,
लोग सस्ते दामों में किरदार बेंच देते हैं ।
सबकी मैय्यत में रोके आया हूँ ,
खुद का जनाज़ा सजा के लाया हूँ ।
मैख़ानों में तेरा चर्चा था ग़ालिब ,
टूट कर बिखरी जो सरे आम ग़ज़ल और बदनाम हुयी ।
कल तक तो उसके हाँथों के छूने से ही बरक़त थी ,
आज क्यों है मनहूस क्योंकि वो बेवा है ?
हम दोनों की तबीयत नहीं मिलती ,
जैसे सियासत ए जिस्म की रूह ए पाक से फ़ितरत नहीं मिलती ।
राह ए उल्फत में हम दोनों मुशाफ़िर साथ निकले ,
हाँथ छूटा तो उसके कदमो में मंज़िल थी मगर हम जहाँ से निकले थे फिर वहीँ आ निकले ।
हम तो बर्बादी ए मुफ़लिश में जी लेंगे सनम ,
तू रहे खुश रोशनी से तेरा जहां आबाद रहे ।
ख़ुमार ए इश्क़ का असर देखिये हज़ूर ,
साथ हम दोनों नहीं क्यों सुनके उसका नाम, पाँव सा थम जाता है ।
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