बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा romantic shayari,

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बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा romantic shayari,
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बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा romantic shayari,

बुतक़दे सा लगता है मक़बरा तेरा,

कल तलक सारा घर चमक जाता था तेरी मौजूद ए हस्ती से ।

 

घर के आले में रखकर कुंजी गर निकलना हो तो ,

दिल ओ जान को भी अलविदा कह दो ।

 

खिज़ा के मौसम में दरख्तों से झड़ गए पत्ते ,

गनीमत ये समझ दर ओ दीवार तक ही ग़मों की सीलन है ।

 

दर ओ दीवार साँस लेती हैं ,

घर का मालिक जब तलक ज़िंदा है ।

 

ज़र्रा ज़र्रा उदास रहता है ,

घर अब भी तेरा साया तलाश करता है ।

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घर की दीवारें अभी पुख़्ता हैं ,

न उम्मीदी में भी तेरी उम्मीद अभी ज़िंदा है

 

दिलों में जज़्बा ए लबरेज़ लबों पर मेहबूब ए इलाही ,

इश्क़ वो सै है जो जलते सेहरा में पुर सुकूत देता है ।

 

आदम ए राहत ओ सुकून की ख़ातिर ,

आदम बस्ती उजाड़ देता है ।

 

मौसम ए तपिस से घायल इब्न ए इंसान के अलावा और भी हैं ,

गोया सुकून ए दिल की ख़ातिर आदमखोर बना बस इंसान क्यों है ।

 

ख्वाब के परिंदों ने ले रखी है झील सी आँखों में पनाह ,

वही सोच के हैरान हूँ रात भर चाँद तकता क्या है ।

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जल रहा था शब् भर चाँद हिज़्र के मारे ,

कूंद पड़ा झील में भोर से पहले लेके तारे सारे ।

 

आफ़ताब ए शहर और अँधेरा घर का ,

जला के रखता हूँ सुकून की ख़ातिर शब् भर चश्म ए चराग ।

 

बिछे पड़े हैं ज़मीन पर हज़ारों मरीज़ ए दानाई ,

एक हम ही नहीं हैं जिसके नशेमन में अँधेरा सा है ।

 

दौर ए मुफ़लिश में राहत ए दिल के लिए ,

वो साथ गुज़ारे लम्हे धरे सेंते हैं

 

शहर के चौबारों में सूखे दरख्तों का साया था ,

अब उसकी छांव की ख़ातिर परिंदे जंगल में भटकते हैं

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बूढ़े बरगद से पूछो दास्तान ए लैला मजनू ,

इसके पत्तों के साये में बुज़ुर्गियत बचपन बिताई है ।

pix taken by google