बेंच आते सर ए बाज़ार दिल अरमान फेंककर good morning shayari,
बेंच आते सर ए बाज़ार दिल अरमान फेंककर ,
गोया जूना चीज़ों का सही दाम भी तो नहीं मिलता ।
माना की अँधेरा बहुत है ज़माने में ,
कोई तो आफताब ए जिगर कर रौशनी की पैरवी करे शामियाने में ।
वक़्त की नज़ाक़त ये कहती है कहा सुनी माफ़ हो ,
न सिर्फ ओह्देदारियों के हक़ में इंसाफ़ हो ।
वो नहीं कहता की मैं ख़ुदा हूँ ,
इंसान सर झुकाता है ज़मीन पर यही क्या कम है ।
ख़ाक ए आदम की ज़मीन से जो बीज निकला है ,
मत पूछ उस दरख़्त से इब्न ए इंसान से उसका रिश्ता क्या है ।
ज़र्रे भर की आरज़ू नहीं दिल में ,
ज़मीन से फ़लक तक की सल्तनत का सपना है ।
ऊपरी वर्क़ है पुस्तक के हलके में न बांचिये ,
गहरे राज़ हैं भीतर भी दिल के सफ़हे टटोलिये ।
दिल के छालों में दर्द कितना है मत पूछो ,
हंसी ख़ुशी ये ठहाके बस चेहरों की इश्तेहारबाज़ी है ।
आदम का ज़माना हो या अब का ज़माना ,
अख़बार की सुर्ख़ियों से नामुमकिन है हाल ए दिल को छुपाना ।
बाहर दहक रहा है भीतर बुझा बुझा ,
हाल ए दिल से होकर गुज़र रहा है हादसों का कारवां ।
चेहरा तेरा एक इश्तेहार लगता है ,
हर्फ़ दर हर्फ़ लरज़ते हैं गोया तू अब भी आज की ताज़ा ख़बर का अख़बार लगता है ।
दर्द अश्क़ों में बयान कर देते ,
ये तो रुस्वाई ए रश्म ए उल्फत होती ।
हम हर्फ़ों की तस्बीह पिरो लाये हैं ,
गोया सफहों को भी हाल ए दिल की ख़बर न होगी ।
तेरे ख़्याल पर भी कोई ग़ज़ल करना ,
सोचता हूँ हुश्न ए मुजस्सिम की तौहीनी होगी ।
bhoot pret ki sachi kahaniyan,
लहू के रिश्तों में भी वो अदब वो संजीदगी देखने को नहीं मिलती ,
जो लोगों में पहले आप पहले आप की होड़ लगा करती थी ।
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