बेजा बात पर अड़ा है दिल shayari hq,
बेजा बात पर अड़ा है दिल ,
इश्क़ ए इबादत में मेहबूब को कहता ख़ुदा है दिल ।
मुझसे वास्ता न रख ज़ाहिद,
मेरी हर इबादत में इश्क़ पुख्ता है ।
मिजाज़ फटफटी सा हवा बैहर,
आज कल कोई भी अपने पानी पत्र का नहीं मिलता ।
जलती बत्ती खण्डहरों में मोम की ,
तू सीखचों की चुभती है जिस्म में रोम रोम की ।
पकड़ सकता है तो लोक के पकड़ ,
आज कल ख़्वाबों में खाली ख़्याल नहीं जज़्बात उड़ा करते हैं ।
रह सकता है तो सादगी में रह ,
कोई इश्क़ ए इबादत में तुझे कहीं ख़ुदा न कर ले ।
जहाँ में इबादतों के लिए क्या ख़ुदा कम थे ,
सुना है काफिरों ने एक मसीहा और इख़्तियार किया है ।
ख़्याल ए गुल ने सजा रखे थे अंजुमन में कारवाँ ,
यहां तो हर गुंचे से रोज़ एक ख़ुदा निकला ।
ऐसे बन ठन के निकले हैं ख़ुदाओं की तरह ,
जाने किस किस पर बिजलियाँ गिराएँगे दुआओं की तरह ।
तमाम उम्र की दुआओं का छोड़ रहम ओ करम ,
जाने किस ओर मुशाफिर मजमा लगाने निकला ।
बात बात में तंज़ हो इश्क़ में ,
मेहबूब ए ख़ुदा की बंदगी तो हर शख़्स किया करता है ।
जी करता है आज सारे ग़म निचोड़ कर रख दूँ ,
गर्दिश ए शहर में अश्क़ों की बारिश भी थोड़ी ज़्यादा है ।
तुम अपनी बेवफाई को इल्ज़ाम न दो ,
हम अपनी बर्बादियों को मोहब्बत का इनाम समझेंगे ।
हसीनो को बेवफाई का मौका दे दो ,
फिर तो तमाम आशिक़ सरे बाज़ार मरें अपनी बला से ।
मुफ़लिश ए वक़्त दाने दाने को मोहताज़ है ,
सैय्याद बिन डकारे साहूकार बन गया ।
उम्र ज़ाया किया इक बुत परस्ती में ,
मेहबूब ए ख़ुदा पर मिटता तो मौत क़ामिल थी ।
लब से दुआ निकली न नमाज़ें अदा हुईं ,
जाने हिज्र के मौसम में कैसे रमज़ान चुक गया ।
नाम निकलता है मेरे लब से दुआ बन बन के ,
एक तेरे सिवा दिल को मेरे कोई काम नहीं ।
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