महरूम हैं बच्चे फ़क़त हर दिन निवाले के लिए 140 words shayari,
महरूम हैं बच्चे फ़क़त हर दिन निवाले के लिए ,
और वहाँ सैय्याद बन बैठा सियासी जेबें भरता रोज़ है ।
बहुत दूर तक असर करती हैं वो सदायें ,
जो अँधेरों में घुट घुट के मरती हैं ।
ज़र्द पत्तों में फैली दास्तान ए इश्क़ हरसू ,
जो कभी मोहब्बतों के कहकशां से बाग़ ए बहार गूँज जाते थे ।
गोया अदावतों से ज़ुल्फ़ें सँवारने की अदा ,
दूजा चाँद का शरमा के घटाओं में छुप जाना ।
जिग़र में लफ़्ज़ों का उतरना ही असर करता है ,
अदद सफ़हों में हर्फ़ दर हर्फ़ की तस्बीह नज़र आती है ।
मोहब्बत जहाँ बेशुमार होती है ,
अदद एक से बढ़कर एक अंदाज़ ए अदायगी मुखड़ों में बयान होती है ।
खुमारी रगों में मेरे अब तलक तो उतरी नहीं ,
मोहब्बत ही तेरी चश्म ए हरम से बह गयी शायद ।
बुतों के शहर में बुतों को सज़ा ए मौत के फरमान दिए जाते हैं ,
सियासी ताक़त की खुमारी में गुनाहों पर गुनाह किये जाते हैं ।
शहर ए आदम पर ख़ुमार मोहब्बतों का रोज़ चढ़ता नहीं ,
फ़रसूदा सी आशिक़ी के अफ़साने भी पुराने हैं ।
तेरे आने की ख़ुशी न तेरे जाने का गम ,
बरहम न ख़ुमारी रही जब तू न हमारा रहा ।
दूर कहीं आह का फुवां उठता है ,
जब दरमियानी रात के दायरे में धुआँ दिखता है ।
तेरे वादे पे जीते हम तो तन्हा मर न जाते ,
दिलों के मार्फ़त निकली तबाही में क्या आशियाना बनाते ।
कभी किसी के बाप ने टंगड़ी तुड़ाई ,
कभी हमारे अब्बू अम्मी ने टँगड़ी अड़ाई ,
इस तरह वाल्देन के चक्कर में पड़ के हम कुँवारे रह गए ।
आदम को आदमियत की खुमारी भा गयी ,
तुम तो ठहरे मुजस्सिम ए बुत अब बुतों को कौन सी बीमारी खा गयी ।
बदगुमान न करदे कहीं मोहब्बत का मुझको सुरूर ,
गर ख़ुमारी में बहकूँ बढ़ के थामिए मेरे हुज़ूर ।
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