मैकदों में छिड़ जाता है जब भी आशिक़ों का ज़िक़्र ए फ़िराक romantic shayari,

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मैकदों में छिड़ जाता है जब भी आशिक़ों का ज़िक़्र ए फ़िराक romantic shayari,
मैकदों में छिड़ जाता है जब भी आशिक़ों का ज़िक़्र ए फ़िराक romantic shayari,

मैकदों में छिड़ जाता है जब भी आशिक़ों का ज़िक़्र ए फ़िराक romantic shayari,

मैकदों में छिड़ जाता है जब भी आशिक़ों का ज़िक़्र ए फ़िराक ,

फिर इश्क़ ए इबादतग़ाह तक काफिरों की नमाज़ होती है ।

 

महफिलें तो अब भी सजती हैं लाव लश्कर से ,

गोया वो महफ़िल ए रौनक का पता नहीं होता ।

 

फ़ितरतन आगाज़ ए इश्क़ मौज ए बोहतान के साथ ,

और सारा इल्ज़ाम किसी एक के सर बेजा बात नहीं ।

 

सोके उठा खुद से लुटा लुटा सा मिला ,

रात भर बोहतान ख्यालों का क़ारोबार किया

 

कारोबार ए इश्क़ में नफ़ा ओ नुकशान की फ़िक़्र नहीं होती ग़ालिब ,

गोया पता तो दूसरों से चलता है किसका घर बार लुटा है

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इश्क़ ए बर्बादियों के चर्चे छप जाते हैं अख़बार में ,

गोया इश्तिहार ए वफ़ा में तेरा ज़िक़्र भी होता ।

 

आगाज़ ए बरमला ,

इश्क़ ए बेइंतेहाई का जानिब ख़ुदा होगा ।

 

यूँ नहीं की ज़ीस्त ए कद्रदानी पर नज़र नहीं रखते ,

गोया बरमला किताबों के सफ़हे नहीं मिला करते ।

 

बर्क़ ए बुत से आदम की तादाद बहुत है ,

बरमला दिल से जो मिले वो इंसान नहीं मिलते ।

 

हमारा इश्क़ था लबरेज़ मौज ए आशनाई से ,

दिल ए आशना को नशेमन कहते बरमला इस क़दर नहीं मिलते ।

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रात कट जाती है यूँ ही फ़लसफ़ों में ,

बाब ए सुखन को दिन के उजालों में बरमला रोशनी के कारवां नहीं मिलते

 

ज़माने भर की रुसवाई को रख के मद्दे नज़र ,

दबे लफ़्ज़ों में पुकार लेता हूँ मैं नाम तेरा शाम ओ सेहर ।

 

इश्क़ के तोहफे को कैसे बरमला करते ,

देख कर अंजाम ए इश्क़ कुछ लोग भी हँसते ।

 

बरमला ए इश्क़ का चर्चा यूँ सरे आम रहा ,

कुछ के ज़ख्म नासूर मिले कुछ का अंजाम ए बेज़ार रहा

 

वफ़ा भी होगी ज़फ़ा भी होगी ,

दाग दामन पे लगे रश्म ए उल्फत को धोने के बाद ।

dard shayari , 

pix taken by google