यूँ ज़हमत न कीजिये हुज़ूर दबे पाँव महफिलों में आकर shayari ,
यूँ ज़हमत न कीजिये हुज़ूर दबे पाँव महफिलों में आकर ,
की अंजुमन में गुलो ने खार के मोती अपनी पलकों से
उठाये हैं ।
कहीं घायल हुयी पाज़ेब कहीं नग़मा हुआ ज़ख़्मी ,
की महफ़िल में दिलों के टूटने के किस्से खूब उछले हैं ।
शहर भर के चरागों का सफ़र लम्बा सही ,
रात पोसीदा ए रोशनी से महरूम नहीं ।
bhoot pret ki sachi kahaniyan,
अपनी यादों से मुझे महरूम न कर ,
तिश्नगी दिल की लब पर शेर बनके आती है ।
जाने कहाँ तक धड़कनो के साथ चला जाऊँगा ,
मैं तन्हा सही तेरी यादों से महरूम नहीं ।
शहर के पत्थरों के बीच बच्चे कमज़ोर रह गए ,
मादर ए वतन की ख़ाक से ही बच्चे शेर बनते हैं ।
यतीम लुक़मा से महरूम यहाँ ,
हुकुमरान मुर्दों के हक़ की भी दावतें उड़ाते हैं ।
सारा का सारा शहर वल्दीयत से महरूम सही ,
मैं तन्हाइयों में सुख़नवर के साथ होता हूँ ।
मैं शहर की भीड़ में गुमनाम सा चलता रहा ,
गुल खिले कचनार के कब अंजुमन में अफ़साने बने ।
है हुश्न ही गर तेरा गरूर ,
तो इश्क़ के सदके में जान हम उतारेगे आज ।
आसमान में होंगे बादल बहुत ,
गोया ज़मीन की प्यास ने सातों समन्दर सोख रखे हैं ।
गगन में सँवरता है ज़मीन पर उतरता नहीं ,
फलक ये सोख निगाहों की प्यास क्यों समझता नहीं ।
उन आँखों की तिश्नगी तौबा ,
जो हर वक़्त सात समन्दर में डूबी रहती हैं ।
कर्त्तव्य और निष्ठा की पराकाष्ठा है नारी ,
रौद्र रूप में और भी बलिहारी है नारी ।
घर घर सास बहू के किस्से होते थे ज़माने पहले ,
अब तो बस किटी पार्टियों में सीरियलों के किरदार मिलते हैं ।
कभी लक्ष्मी कभी दुर्गा कभी काली कभी चण्डी ,
कभी तंदूर की लौ में कभी फांसी में तू लटकी ।
जब से पहना है हिरोइनों ने जीन्स बूट थिएटरों के ,
हीरो हुए गे सिल्वर सेलुलॉइड स्क्रीन में नारियों के कब्ज़े होने लगे ।
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