यूँ ही नहीं प्लेटफार्म में ट्रैन के डिब्बों के पीछे दौड़ता बचपन shayari in hindi,
यूँ ही नहीं प्लेटफार्म में ट्रैन के डिब्बों के पीछे दौड़ता बचपन ,
मज़बूरियों ने पगडंडियों से पटरियों तक का सफ़र तय कराया होगा ।
बचपन में ही गुम गया होगा ,
हँसता कैसे वो खोकर अपना चाँद सा हसीं दिलकश चेहरा ।
रात की अलसाई आँखों में ऊँघता बचपन ,
सुबह सूरज की किरणों संग फुर्र होके उड़ना चाहता है ।
कसे कसे थे बचपन के शिकंजे सारे ,
खुले हांथों से अब अपनी जवानी में रंग भरना चाहता हूँ ।
निगाह ए रूबरू हो जिगर चाक चाक ,
हो मोहब्बत जब भी क़ामिल जिस्म ख़ाक ख़ाक हो ।
खुरदुरे सिक्के भी चल जाते हैं राह ए फकीरी में ,
फ़क़ीरों की दुआओं में यगना वाली बात होती है ।
सब्ज़ बागों में सपने तलाशती ये नज़र ,
आज मौसम का मिजाज़ बड़ा यगना है ।
फ़ितना गीरी रह रह के दिल में कसकती है ,
कोई और सूरत देखि नहीं सूरत ए यगना के बाद ।
लकीरें हमारे हांथों में कम न थी ,
तक़दीर उनकी यगना होगी जिन्हें तू बेइन्तेहा मिला ।
देर रात जब सरहदों पर बात चलती होगी ,
कुछ ख़्वाब जुगनुओं से आँखों में चमकते होंगे ।
शहर शहर को देखने लगता है तेरे आने के बाद ,
गोया क्यों कर कहूँ की मेरे शहर में यगना सेहर नहीं होती ।
इश्क़ के ज़ानिब भी कुछ किया करो ज़ाहिर ,
बस सुबह ओ शाम के दुआ सलाम से दिल की नज़्मे पूरी नहीं होती ।
शौक़ हमें ही था बर्बाद होने का वरना ,
वरना मोहब्बत की सियासतें इतनी यगना नहीं होती ।
वो नज़रों से बयान बाज़ी वो हाज़िर ए शबाब ,
ज़ाहिर सा हो रहा है इश्क़ ए ज़ानिब सा बुरा हाल ।
ज़ाहिर है मेरा हाल ए दिल तेरे वज़ूद से ,
चाहे इसे आबाद रख चाहे खाना बदोश कर ।
उन नज़रों से हाज़िर जवाबी मांगती है नज़र ,
जिन नज़रों के हाज़िर नाज़िर नज़रें बिताई तमाम उम्र ।
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