ये इज़हार ए इश्क़ है तल्खियों में बयाँ होगा 2line attitude shayri,
ये इज़हार ए इश्क़ है तल्खियों में बयाँ होगा ,
लोग जल के मर जाएँ निगाह ए शोख में अपनी बला से ।
कितने डूबे हैं कितने इस पार पड़े हैं ,
तेरी मदमस्त निगाहों में तैरने को जाने कितने तैयार खड़े हैं ।
लोग आये आकर चले भी गए ,
इस तरह ज़माने का क़ाफ़िला आगे बढ़ता रहा ।
लोग जलते हैं तो जल के ख़ाक हो जाएँ ,
हमने आतिश ए शहर को जलवा ए यार तेरे होठों के तबस्सुम पर सजा के रखा है।
साद ए गुल दिल था सब्ज़बागों की दरक़ार न थी ,
जाने क्यों लोगो से इतनी सी ख़ुशी देखी न गयी ।
बंद जँगलों में चिलमन उढा के रखते हैं सूरत ए फ़ानी वाले ,
जाने कब क्या देख के लोग जल जाएँ ज़माने वाले ।
कल तेरी बारी थी तूने मेरे ज़ख्मों में नमक डाला था ,
आज फिर वक़्त है मेरा रंजिश ए ख़्यालात तुझ मैं निकालूँ कैसे ।
सोने वालों के साथ सोते सोते थक के सो जाती है तक़दीर ,
फिर किसी और मुशाफिर के साथ सफर पर निकल जाती है तक़दीर ।
ज़िन्दगी हमको नागवारा गुज़री ,
लोग समझे हम ग़म ए ज़िन्दगी को गवारा न हुए ।
आजकल नाज़नीनों ने तूफ़ान उठा रखा है ,
लोग कहते हैं सब मरेंगे मिजाज़ ए इश्क़ का तक़ाज़ा है ।
ज़माने की परवाह उतनी ही ज़रूरी है मौसकी के लिए ,
लोग मिल जाएँ मरते वक़्त मौज ए तिश्नगी के लिए ।
हँस के मिलते हैं लोग महफ़िल में,
अब महफ़िल ए रानाईयों में वो नज़ाक़त न रही ।
लोग साफ़ मुकर जाते हैं कश्म ए वादों से ,
अब तो फ़िराक ए शहर में भी तेरी वफ़ा ए इश्क़ का हमसाया है ।
जैसे तैसे कारवाँ निकला था राह ए मंज़िल को ,
साथ छूटता गया और लोग तन्हा होते गए ।
भरी भीड़ों में हादसे हसीं हुआ करते हैं ,
लोग होते हैं माह ए ज़बीन दिल ग़मज़दा रहा करते हैं ।
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