ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस one line thoughts on life in hindi,

0
1652
ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस one line thoughts on life in hindi,
ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस one line thoughts on life in hindi,

ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस one line thoughts on life in hindi,

ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस ,

ग़म के साथ तर्क़ ओ ताल्लुक़ भी तार तार हुए ।

 

कमाल की शायरी में जुमले कमाल के ,

ये आरज़ू ए आशिक़ी है या मौसम ए सुखन

 

मोहब्बतों की सारी उम्मीदें गर मुझी में सिमटी हों ,

मैं कैसे किसी गैर की आरज़ू करता ।

 

लिख सकते हो गर लबों पर मोहब्बत लिख दो ,

प्यासे नज़रों में दीदा ए यार की तलबगीर सम्हाली नहीं जाती ।

 

वो जो नज़रों की जुम्बिश बहुत समझते हैं ,

कभी आरज़ू ए दिल का जवाब तक नहीं देते ।

literature poetry 

तेरे ख्यालों का मखमली एहसास ,

लम्हा लम्हा ज़हन में चुभता है ।

 

इस जहां के बाद भी होगी कोई मंज़िल ए बहिश्त ,

जहां दो रूहें सुकून से दीदा ए यार करेगी ।

 

आजकल नींद कहाँ पूरी होती है ,

ख़्याल ए यार में ख़्वाबों की जन्नत सी दूरी होती है ।

 

मखमली बिस्तर पर भी ख़्याल ए बहिश्त ,

हिज्र की रातें बस करवटों में कटती हैं ।

 

शहर भर का सुकून है गर तेरी नज़र ए बहिश्त ,

मुझको मेरा जला हुआ दिल फिर लौटा दे ।

literature poetry 

बहिश्त ए चिलमन के तले भी ख्वाब पलते हैं ,

मुमकिन है उनका अपना सूरज एक अपना आसमान हो ।

 

फ़िज़ा की गर्दिशें ख़ाक उड़ा ले जाएगी ,

शहेंशाह ए बहिश्त इतना फौलाद न बन ।

 

जब भी लिखता है तो ज़हर लिखता है ,

आदम ए सूरत से भोला है मगर जिगर से खूंखार दिखता है ।

 

तुम म्यान ए समसीर से धार की बात न करो ,

हम दोस्ती में हर गुनाह माफ़ करते हैं ।

 

अपनी मिटटी को जनाज़ा कहता , 

दोस्त बनकर कैसे अपने काँधे का सहारा देता ।

 

बनी बनाई बातें करने का ज़माना बीत गया ,

दोस्त होतो सुख दुःख में साथ आहें भरो

 

ग़म अगर हो तो बात अच्छी है ,

उल्फत ए दौर में साद ए सामान थोड़ा ज़्यादा है ।

literature poetry 

pix taken by google