रात के सन्नाटे को चीरती ट्रैन की सीटी sad shayari ,
रात के सन्नाटे को चीरती ट्रैन की सीटी ,
प्लेटफार्म पर हाँथियों की चिंघाड़ सी थम जाती है ।
दूर जाती हैं पटरियां शायद ,
लौट के बस ट्रैन चली आती है ।
कितने क़ाफ़िले गुज़रे होंगे इन पटरियों से होकर ,
फिर भी एक पटरी दूजे पटरी से न मिल पाती है ।
जोड़ती हैं दिलों की सरहदें मगर ये पटरियां ,
कभी खुद जुड़ नहीं पाती ।
कभी कभी मन मेरा भी बावरा बनकर ,
जाने कितनी दूर निकल जाता है ।
मगर इन पटरियों की वीरानी देख,
दिल मेरा फिर दहल सा जाता है ।
पटरियों के इर्द गिर्द फैले अंधेरों को देख,
मन का बचपन सहम जाता है,
चलो शरारतों के दौर अच्छे थे ,
मन की पटरियों पर दौड़ते नन्हे बच्चे थे ।
चकाचौंध सी अब भी मच जाती है ,
जब पटरियों पर कोई आहट सी गुज़र जाती है ।
कितने मंज़र दिखाती है,
ट्रैन की खुली खिड़कियों से जब ताज़ा हवाएं आती हैं ,
किसी के स्कार्फ की महक से जब सारी बोगियां घूम जाती हैं ।
टिक जाती है नज़रें प्लेटफार्म पर ब्रेक की चिंघाड़ सुनकर,
काश कोई फिर मिल जाए भूला भटका यार बनकर ।
ट्रैन का सफर है लंबा स्टेशनों संग लोगों के किरदार बदल जाते हैं ,
पाँव पड़ते हैं सैकड़ों फर्श पर जब एक साथ ,
दिल में अनगिनत सांप लोट जाते हैं साथ साथ I
न कोई आया था,
न फिर कोई आया मेरा ।
मैं उस वक़्त से इस वक़्त तक,
एक उम्र के प्लेटफार्म पर हूँ ठहरा I
छुई मुई सी भीड़ थी छू मंतर बनके निकल गयी ,
भीड़ के बाद प्लेटफार्म पर बस भूतों की बसेर रह गयी ।
चलो सेहर नयी कहीं दूर टहलने को चलते हैं ,
आज फिर सुनते हैं खेतों से आती टिटिहरीयों के टेहने की आवाज़ें ।
ट्रेनों और प्लेटफार्म के दरमियान सुर्ख सफक उजालो के ख़्वाब बुनते हैं ।
pix taken by google
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