रिश्तों के सूखे दरख्तों को मतलब की दीमक निगल गयी sad shayari ,
रिश्तों के सूखे दरख्तों को मतलब की दीमक निगल गयी ,
इस तरह मिटटी का जड़ों से तर्क ओ ताल्लुक़ ख़त्म हुआ ।
कुछ लफ्ज़ हैं जो दिल तक असर कर जाते हैं ,
वैसे दर्द का रूहों से कोई ताल्लुक़ नहीं होता ।
जनाज़े लाख निकले हों जिस्मों के ,
कब्रों की दबी रूहों में गर्माहट आज भी है ।
उनके शहर में आज चाँद जगा है सारी रात ,
हमने भी शब् ए फ़िराक की तफ़री में आँखों को सोने न दिया ।
मोहब्बत में संजीदगी के ज़माने बिसर जाइये ,
ज़ौक़ ए आशिक़ी के दौर में क्या किसी का नाम याद रहता है ।
सातों दिन कारोबार ए इश्क़ में खुधे रहना ,
रोज़गार ए इश्क़ में भी एक इतवार होना चाहिए ।
क्या एक मुख़्तसर सी मुलाक़ात जानलेवा थी ,
बाद रुखसत के भी तेरे कूचे में उम्रें जाया की ।
दौर ए वक़्त के साथ मिलने जुलने के तौर तरीके बदल गए ,
न दुआ सलाम सीधा वेयर यू फ्रॉम में उतर गए ।
खुद के ख़्वाबों से ताल्लुक़ात नहीं ,
कारोबार ए इश्क़ में जाने कैसे कैसे ख्यालों के कारोबार हुआ करते हैं ।
शब् ए फुरक़त में आरज़ू ए दिल बह गयी सारी ,
इन अश्क़ों की बारिश में भी बस जुस्तजू ए चराग जलते रहे ।
ग़म ए गर्दिश में उम्रें गुज़ारी ,
शेर ओ शायरी में बस लुत्फ़ ए ज़िन्दगी के फ़लसफ़ों की नुख्ताचीनी है ।
दिलों में क़ामिल ए मोहब्बत की आरज़ू लेकर ,
मैं निकल आया हूँ शब् ए फुरक़त में जुगनुओं का दरियाओं की लहरों पर नज़ारा करने ।
जो मयकदों की मयकशी से बच निकले ,
वो ही आजकल शायरों की महफ़िल में जलवाफरोश नज़र आते हैं ।
फ़नाह ए इश्क़ ही हो गर मंज़िल ए मक़सूद ,
तबाह ए ज़िन्दगी कौन परवाह किया करता है ।
आह भी उठी नहीं मेरे क़फ़स से ,
मेरे ज़िंदा होने का सबूत ज़माना मांगता है ।
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