रूहानी दायरों से होकर कभी गुज़रों नासेह quotes,
रूहानी दायरों से होकर कभी गुज़रों नासेह ,
ज़ख़्मी रूहों की तल्खियां तुमको भी सुनायी दें ।
उतारने पड़ते हैं सफ़ीने बहते दरिया में ,
यूँ किनारो पर लंगरों से दिलों की गहरायी का अंदाज़ा नहीं होता ।
तेरे टिप्पस के सदके चौबे जी भी चौकसे हो गए ,
सहादतो के हिस्से भी हुश्न वालों के किस्से हो गए ।
नहीं मरने देगे हम अपने क़ातिल को ,
वही हमदम भी वही सितमगर भी है अपना ।
मोहब्बत में क्यों इतना गस खा रहे हो ,
इब्तेदा ए इश्क़ का जुमला बना रहे हो ।
गगन कर आलिंगन धरा का है स्वयम्बर ,
चमक चंचल चपल संग लो काले मेघ बरसे ।
मज़हबों में जब से सियासत घुल गयी ,
सारे मज़हब तब से ठिकाने लग गए ।
कभी ठण्डक में सो लेती है कभी तकिये में रो लेती है ,
नारी घर की मर्यादा को हर हाल में कायम रखती है ।
करुणा दया का भण्डार बनकर .
नारी ने समाज को सम्हाला है संस्कार बनकर ।
कभी तू देवदासी कभी प्रेयसी कभी जगदम्बा भवानी ,
कभी तू माँ कभी बेटी कभी रण में चंडिका बन ठन गयी ।
रात होते चन्द्रमा की चाँदनी बन गयी ,
फिर सुबह को घर की नौकरानी बन गयी ।
कभी कोख में कभी दोष में कुलटा बनाया ,
कभी मेहर में कभी दहेज़ में ज़िंदा जलाया ।
वैदिक पुराणों में नारी को देवी बताकर ,
क्विंदन्तियों में सती को चिता में पती के साथ ज़िंदा बिठाया है ।
वीर गाथाओं में वीरांगनाओं के बड़े किस्से हैं ,
कुलषित समाज में बली की बेदी ही इनके हिस्से है ।
किताबों में किस्सों में अधिकार की बातें होती हैं ,
खरीद फरोख्त में नारियों के देह व्यापार की बात होती है ।
ज़ुल्म लाख सहती है लब पर उफ़ करे बगैर ,
बर्दास्तगी की हद से देखनी है तो औरत के बर्दास्त की हद को देखो ।
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