लफ़्ज़ की तासीर का अपना ही है सुरूर dard shayari,
लफ़्ज़ की तासीर का अपना ही है सुरूर ,
कुछ बेमुराद क़ातिल ए असरार का है कसूर ।
लब पर नाम हो ख़ुदा का दिल में बंदगी हो रब की ,
इश्क़ हर दुआ में बस दिल से महसूस किया जाता है ।
इश्क़ में पड़ा जब ग़ालिब पण्डितों ने कहा धर्म ईमान से गया ,
अब शायरों की सोहबत में है आगे अल्लाह ही खैर करे ।
नहीं जीना हमें टुकड़ों में हम पुराने वक़्त सही ,
नयी सूरज की किरणों में गर्द ए ग़म को साफ़ करेगे ।
बड़ी नज़ाक़त से कुचला दबे अरमान सीने के ,
पुराने वक़्त सा गुज़रा न ठहरा न पुछा न भाला ।
एक जहान से गुज़रने का बहाना था ,
तुझ में मेरा, मेरा तुझ में ठिकाना था बसेरा टूट गया पंछी उड़ गया ।
कल्पवाश है धीज में गंगा काहे रोये ,
पापी पुण्यी सब धुले कछु न अन्तर होये ।
झील सी आँखों में डूब मरा शायद ,
मेरे देखने में इतनी गहरायी तो न थी ।
सच्ची मोहब्बत है या चाँद को खीसे में धर के ,
ग़ालिब सी लोंदी लोकने का ख़्याल है ये इश्क़ ।
तमाम उम्र ज़राफ़त ए इश्क़ का रोना रहा ,
नज़र टिकी रही आस्मां में दिल ज़मीन पर बिछौना रहा ।
तेरे इश्क़ की ज़राफ़त क्या कहूँ ज़ालिम ,
सीना फफकता दिल जिगर ख़ामोश बैठे हैं ।
हर रात का इंतज़ार करता है चाँद भी ,
शब् ए बारात न होती तो कौन देखता मेहबूब सी दमकती चाँदनी ।
भीड़ में तन्हा फिरी ग़ालिब की शायरी ,
जनाज़े में मची धूम ग़ज़ल सब के लब पर थी ।
ग़ालिब हुआ फ़क़ीर तो इश्क़ उसका ख़ुदा था ,
आशिक़ी थी इबादत सामने मेहबूब खड़ा था ।
जश्न ए ग़ालिब में लुटी शायरी बे आबरू हुआ इश्क़ ,
इश्क़ पर ज़ोर नहीं कोई ख़ुदाया खैर नहीं ।
क्या खता हुयी जो ग़ालिब से प्यार करने निकले ,
बाजार सर्द था इश्क़ का गोया अपनी शायरी भी लुटा बैठे ।
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