वक़्त बेवक़्त दो शीशे के ज़ाम भरे भरे dosti shayari ,
वक़्त बेवक़्त दो शीशे के ज़ाम भरे भरे ,
ज़िन्दगी है क्या ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन ए ख़ाक की कहानियाँ ।
लबों पर इबारतें लिखने का शौक़ हो ग़ोया ,
ज़ाम में डुबोकर पहले कलम को तर कर लो ।
दिलों का टूटना जुड़ना पुरानी आदत है ,
दिल तो फ़ितरतन बचपन से ख़ुराफ़ाती है ।
हम दिलों के टूटने जुड़ने का खेल खेलते हैं ,
जिन्हें ज़ौक़ ए दिल्लगी न हों घरों को अपने इत्तेला कर दें ।
न जिस्म पिघलता है न रूह तबाह होती है ,
दिलों के टूटने की कोई आवाज़ कहाँ होती है ।
टूटने के ख़ौफ़ से घरों से न निकले वो बुज़दिल होंगे ,
दिलों का टूटना जुड़ना खेल में तो पूरा लाज़िम है ।
टूटा फूटा दिलों का बस्ता समेट कर ,
दिल वाले फ़िर से दाख़िला ए इश्क़ में तालीम ओ तरबीयत के तलबगार रहेगे ।
टूटे फूटे दिलों की मरम्मत होती गोया ,
आशिक़ों के जनाज़ों से चौक चौबारे न सजते ।
टूटते चाँद सा फलक से टूटा दिल ,
टूट के बिखरा ज़मीन पर मुराद पूरी हुयी ।
हमने तो मोहब्बत की थी साक़िब ,
ज़माने ने तिज़ारत का नाम देकर मायने बदल दिए ।
मौत है जश्न फ़िर तन्हाईयाँ हैं ,
ज़िन्दगी की यही सच्चाईयाँ हैं ।
लुत्फ़ आता है मुझको सोने में ,
मेरी मैय्यत को खूब सजाना यारों ।
ज़िन्दगी कब की फ़नाह हो गयी साकिब ,
अब तो बस दर्द भरे नग़मे बचे हैं सारे ।
शबनमी ज़ाम का असर है साक़ी ,
गुलों के राज़ अभी ताज़ा हैं ।
तुम्हारे ख़याल उड़ते रहते हैं ,
आसमानो का कोई नशेमन नहीं होता ।
इश्क़ ए सुख़नवर की लत बुरी होती है साकिब ,
जाम उठवा के चाहे किरिया करवा लो ।
सूखे सूखे लबों से ज़ाम तक की दूरी ,
लड़खड़ाकर ही सही पास चले आते हैं ।
प्यास अधूरी सी ज़ाम आधा सा ,
रात अधूरी सी इश्क़ का दाग़ आधा सा ।
ज़ाम से ज़ाम की गर बुझती प्यासें ,
रात भर पीके भी दो लबों के ज़ाम सूखे न होते ।
रात भर बस इधर उधर की बातें ,
बातों बातों में रातें खर्चा की ।
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