वादी ए गुल में क़हक़शाँ सजते थे कभी romantic shayari,

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वादी ए गुल में क़हक़शाँ सजते थे कभी romantic shayari,
वादी ए गुल में क़हक़शाँ सजते थे कभी romantic shayari,

वादी ए गुल में क़हक़शाँ सजते थे कभी romantic shayari,

वादी ए गुल में क़हक़शाँ सजते थे कभी ,

कमबख़्त क़ुदरत के क़हर से सब्ज़ बाग़ हसीं देखे न गए ।

 

खूब सुर्खियाँ बटोरती हैं खबरें इश्क़ ओ ज़फाओं वाली ,

कभी दास्तान ए लैला मजनू का भी तो इस्तिहार छपे ।

 

यूँ नज़रों से दिलों के हालात बयान होते हैं ,

भर जाए ग़म बहुत तो आँखें खुद ही छलक जाती हैं ।

 

जो डूब मरे हसीं आँखों की गहरायी में ,

वही जाने क्यों दरिया को लोगों ने अज़ाब बना रखा है ।

 

तस्वीरों से आँखों की गहरायी का अंदाज़ा नहीं होता ,

डूबने वाले ही जाने चश्म ए दरिया में तैरना भी हुनरबाज़ी है ।

sad shayari 

कसूर नज़रों का था सज़ा दिल को मिली ,

फिर संगदिल ज़माने में नादान ग़िरफ़्तार हुआ ।

 

झील सी नज़रों में उतरने से डरना ,

फिर उसी आँख में ता उम्र डूबते तैरते रहना ।

 

हम अपनी तबीयत से नादाँ वो अपनी अदा से फ़ानी ,

फ़िज़ा में तूफ़ान भरा इश्क़ की फ़ितरत बेईमानी ।

 

वो कहते हैं दिलों की लगन लगाए क्यों नहीं ,

हम सब्ज़ बागों से आँख मूँद के गुज़रे भी तो नहीं ।

शौचालय एक दर्द कथा a short story ,

ज़ख़्मी अश्क़ों के छाले देखता है कौन ,

बस पलकों की तंग गलियों से मुकुर के गुज़र जाते हैं ।

 

नादानी उनकी थी कुछ नासमझ हम भी थे ,

ख़्वामख़्वाह मोहब्बत में उम्रें ज़ाया की कोई इशारा किये बग़ैर ।

 

हमने जब चाहा सिद्दत से चाहा ,

वो मिले भी मुद्दतों बाद तो किनारे से निकल गए ।

 

इश्क़ ए आब से वाक़िफ़ वो नहीं ,

या मोहब्बत ए जानिब खुद नामाकूल बने बैठे हैं ।

 

ऊँचे मकानों से नीचे दुकानों तक जो डूब गए ,

माँओं के लाल गए बेवाओं के मेहबूब गए होंगे ।

 

खामोश वादियों में इमदाद ए ग़ुहार पसरी है ,

ज़िन्दगी पर क़हर बनकर आसमानी क़यामत बरसी है ।

 

आ खुशियों में इज़ाफ़े इमदाद करें ,

दिलों के गिले शिकवे लबों से माफ़ करें ।

pix taken by google