वादी ए गुल में मुस्कुराहटें नहीं sad poetry in english urdu,
वादी ए गुल में मुस्कुराहटें नहीं ,
शहर भर का पारा गिरकर तेरे कदमो में सिमटा हो जैसे ।
हवा के सर्द झोंके ख़ाक तेरी भी उड़ा ले जायेंगे ,
राज़ जितने भी चाहो दफ़न कर लो सीने में ।
लफ़्ज़ों से फ़िज़ाओं से ज़ुल्फ़ों की घटाओं से असर होता है ,
उल्फत ए दौर में नरम लहजों की वफाओं से असर होता है ।
हो गया संदल बदन ख़ाक ए ज़मीन को मल मल के ,
वतन परस्ती में जीते हैं जान ए निशार कर कर के ।
किस्से तरावटों वाले,
मेरे वतन की मिटटी में खिल खिला के हँसते हैं ।
fear of deserted jungle a true short horror story ,
होंगे महज़ मिटटी के टुकड़े जो ज़मीन का कारोबार किया करते हैं ,
ख़ाक ए वतन की ख़ातिर सहीदों के घर बार लुटा करते हैं ।
रात सन्नाटे में बेख़ौफ़ गुज़र जाती है ,
आफ़ताब ए शहर में जलते हैं दिल दिन के उजालों में रूहों को चैन नहीं आती है ।
कितना ढोता लड़कपन नंगे पाँव पर ,
गोया शहरी परिंदों से गाँव वापस जाया भी नहीं जाता ।
वो तो मुशाफिर था मेहमान बनके सब लूट गया ,
तू तो अपना था दिल की हिफाज़त करता ।
कब रुकेगा रात में सड़कों का खूनी हादसा ,
बेख़ौफ़ कुचल डाला फुटपाथ पर इंसान क्यों सोया हुआ ।
इब्न ए इंसान यतीम फुटपाथ पर सोता रहा ,
गोया वफ़ादारी के नाम पर कुत्तों के पिल्ले पालतू होते गए ।
जाने किस लहज़े में बात करूँ ,
वो बस पालतू जानवरों की ज़बान समझते हैं ।
दब गयी अवाम ए आवाज़ घुट घुट कर ,
सियासी दरिंदों ने ऐसा कोहराम मचा रखा है ।
बिक गए हो गर खिलौने सारे ,
तू मेरे दिल को फिर खिलौना करके सौदा करले ।
आदम ए वेहसत की आमद है हरसू ,
रिहायसी इलाकों में क्यों जानवरों का बूचड़खाना चला रखा है ।
आवाज़ों की गुमनामी ने बंदिशें डाल रखी हैं वरना ,
आगाज़ ए इन्किलाब दबाये नहीं दबता ।
pix taken by google
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