वो आलम ए आरा ये अज़ीम ए आराइश new year shayari wishes,
वो आलम ए आरा ये अज़ीम ए आराइश ,
पुराने अलविदा तुझको नए की जश्न ए फरमाइश ।
फिरदौस ए चमन से बहारें नदारद हैं ,
सर्द मौसम के झोकों ने गुल ए ज़ेबा को लूटा है ।
गम ए गर्दिश में भटकते भटकते ,
रात सुबह तक एक नया बसेरा बना ही लेगी ।
सिर्फ हर्फ़ दर हर्फ़ लिखने में कुछ नहीं होता ,
गोया कुछ लफ़्ज़ों की अदायगी में भी अदाकारी है ।
क्या है की ख्यालों की भीड़ ज़्यादा है ,
कोई अपना बचा भी नहीं ,
बस दो चार सुख़नवर हैं जो साथ मेरे जीते हैं और रात की तन्हाइयों में साथ साथ होते हैं ।
धू धू कर के जल गया चाँद तारों भरा अम्बर ,
ज़मीन के ज़र्रे ज़र्रे पर सर्द राख जमी है ।
मुझे मेरा दीन ओ इल्म पता नहीं ,
तुम दिल ए नादाँ को अहमक समझ कर ही मोहब्बत कर लो ।
देखे हैं आईने में चेहरे बदल बदल ,
हर बार एक लिबास में नया किरदार आ गया ।
हिज़ाब ए दस्तकारी तो बस रवायत है ,
शहर भर में लोग चेहरे का बर्क़ बना लेते हैं ।
मौसम ए दस्तूर है क्यों न जश्न मनाया जाए ,
एक मैं तुम और सर्द हवाओं को जलाया जाए ।
जंग ए मुहीम का देखा ये असर ,
घर के रखवाले ही घर के चरागों के क़ातिल निकल गए ।
अपने लहू से सींचे जो खुद का बगीचा ,
गुंचा ए गुल को ख़ाक करे क्या कोई ऐसा भी ख़ुदा होगा ।
अवाम का बस आँसुओं में ही इन्किलाब रहा ,
हुकूमत ए बर्तानिया या कोई और सिपहसालार रहा ।
इतना न भरो ज़हर की आब ओ हवा ज़हर कर दो ,
अपना लख़्त ए जिगर अवाम ए वसीयत की नज़र कर दो ।
ऐसा भी क्या गस ऐसी भी क्या बेहोशी ,
क्या आदम की खून ए बू तुझे महसूस नहीं होती ।
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