वो शौऱीदगी नज़र की कुछ इस तरह से खल गयी whatsapp status ,
वो शौऱीदगी नज़र की कुछ इस तरह से खल गयी ,
काँटे भर की सुई खंज़र बनकर जिगर में उतर गयी ।
दाग़ क्या दोगे ज़माने वालों ,
हमने अदावत ए यार के ज़ख्म सीधा जिगर में खाये हैं ।
दरमियाँ ए दिल फासले थे इतने ,
दिल ख्वामख्वाह दरख़्तों की टहनियाँ तोड़ता रहा ।
ताउम्र दिल उसकी हिमायत करता रहा ,
जो दिल के ज़ख्मों को सहला सहला कर के ज़ख्म देता रहा ।
गिन गिन के हिज्र की तन्हाइयों का हिसाब होता है अदद ,
तब कहीं जाकर के सेहरा बेनक़ाब होता है ।
शेर ओ सुखन के क़ाफ़िले यूँ रात दिन चले ,
दिलों के बारहां से निकले दिलों तक पहुचे भी दिन ढले ।
यूँ तो मसीहा है अपने नशेमन का हर शख्स यहां ,
ख़बर किसी को नहीं कौन किसकी परस्तिश में ग़ुम है क्यूँ और कहाँ ।
वक़्त ने भर दिए ज़ख्म सारे ,
दिल में फिर भी रह रह के फ़िर भी कुछ कसकता ।
हमने तन्हा गुज़ारी हैं सिसकती रातें कितनी ,
शब् ए माहताब आस्मां क्यूँ रो रो के सितम ढा रहा है ।
क़फ़स में रूहों को सुकून मिलता नहीं ,
उस पर लोगों का ताना तुम्हारी जान लेकर के जा रहे हैं हम ।
करम फरमा रही हैं उसकी यादें ,
हिज्र की रातों में बारिश के संग क़हर बरसा रही हैं उसकी बातें ।
जब भी चाँद तारों से बात होती है ,
कुछ ख्वाब दौर ए उल्फ़त के आज भी सोने नहीं देते ।
आशिक़ के उठते जनाज़े की गुज़ारिश है ,
ख़ाक ए सुपुर्दगी के पहले भी सेहरा गाया जाए ।
सोचता हूँ इस रात की नीयत सवार दूँ ,
सज़दा ए इश्क़ में फ़लक़ के चाँद तारे ज़मीन पर उतार दूँ ।
हाँथ सेकोगे तो जल जायेगा ,
सब्ज़ बागों को उजाड़ा भी इब्न ए इंसान ही है ।
ख़ुद के आदम ए ख़ुल्द को ही जला कर निकला ,
आज का इंसान कितना खुदगर्ज़ निकला ।
pix taken by google
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