शब् ए फ़ुर्क़त में चाँद तारों की तफ़री romantic shayari,
शब् ए फ़ुर्क़त में चाँद तारों की तफ़री ,
मज़दूरी में ऐ आसमान बस दीदा ए यार को देदे ।
वस्ल की रात और गरूरियत ए जज़्बा ,
इज़्ज़त भुला के क्या चाँद तारे और जुगनू ही जला करते हैं ।
उँगलियों में तरासता है मज़दूर ताज़ ए मुजस्सिम ,
दौर ए जहां के मज़दूर के पोरों में बड़ा मलबा जमा है ।
जितने मौसम हैं फ़िज़ा के यहाँ बदरंगे हैं ,
जिसको फिर भी हो अदावत ए इश्क़ वो ज़माने से जंग लड़े ।
जश्न ए रानाइयाँ मुबारक़ हों तुझे ,
ये मेरा इश्क़ है जो लहू बनकर आँखों में उतर आता है ।
दो बूँद इश्क़ ए शबनम तो गिरा करके देख ,
सुर्ख लब पर कितना गज़ब का निख़ार आता है ।
दिल बाज़ नहीं आता ज़ख़्म खाने से ,
दौर ए इश्क़ ही ऐसा है हिमाक़तें बढ़ा ही देता है ।
घुप अंधेरों में मचलते हैं सुख़नवर ऐसे ,
दिन के उजालों में झुलस जायेंगे हसीं ख़्वाबों की तरह ।
उम्मीदों में तबाह होते हैं कई फलते फूलते क़ारोबार ,
ये इश्क़ ए बेमुरव्वत ने जाने कितनो को किया है बेरोज़गार ।
सब्ज़ बागा और कारवां ए आदम का हुज़ूम ,
जहां भर की बरबादियाँ ओ तंबाही का मंज़र तो न था ।
आखिरी सफर जहां में तन्हा है ,
फिर क्यों आदम ए सूरत कारवां तलाश करता है ।
कारवां ए शख़्स का तोहफ़ा नायाब था ,
कोई दिल खोल के मिला कहीं तज़ुर्बा ए सफ़र ख़ानाख़राब था ।
गरूरियत ए तैश का नज़ारा हरसू ,
फ़िक्र ए आदम को क्या ख़बर कब कहाँ कैसे कारवां बिछड़ जाए ।
सबका कारवाँ रोशन ए जहां से गुज़रा ,
गोया एक हम ही माह ए नूर से महरूम रहे ।
हाँथ से हाँथ मिलते रहे चरागों के ,
दिलों का फासला बढ़ता गया ,
मैं कहीं गुम रहा अंधेरों में ,
रोशनी का कारवाँ बनता गया ।
रहता है आजकल यूँ दिल ए नादाँ ख़फ़ा ख़फ़ा ,
कहने को लख़्त ए कारवाँ है फ़ितरत जुदा जुदा।
pix taken by google ,