शब् ए माहताब वो पहली बात उस पर चाँद की दुहाई good night status,
शब् ए माहताब वो पहली बात उस पर चाँद की दुहाई ,
बाद मुद्दत के नूर ए नज़र में शर्म जाके नज़र आई ।
यक़ीनन वो बेवफ़ा तो नहीं था ,
माना की शर्म नहीं थी इज़हार ए मोहब्बत का ज़ायका भी नहीं था ।
कभी देखे हैं सुख़नवर ऐसे ,
नाग नागिन के जोड़े लिपट रहे हों जैसे ।
बात जब वादे वफ़ा पर आती है ,
उनकी चाल पर क़लम थम सी जाती है ।
आज भी उसी नज़ाक़त से क़लम उठती है ,
हर्फ़ दर हर्फ़ जब तेरा ज़िक्र होता है ।
बूँद बूँद टपक रहा है शबनम बनकर ,
मुजस्सिम ए बुत ख्यालों में तेरा बोसा पाकर ।
फर्श पर फैले दरीचे में अब भी सिलवट है ,
तेरे पैरों का अँगूठा तो नहीं ज़ख़्मी हुआ ।
कुछ तो मर गए होंगे शर्म के मारे ,
आज शब् ए माहताब नाज़नीनों का जो दीदार हुआ ।
तुम भी थोड़ा बेहयाई में बेतक़ल्लुफी बरतो ,
सारा शर्म ओ हया का ठीकरा जब हम पर फोड़ रखा है ।
सबकी जश्न ए मैय्यत में चला जाता है ,
भूखे को दावतें लूटने में शर्म आती नहीं ।
झुकी पलकों से न उठ सकेंगे जलवे उनके ,
शर्म आये तो बुझा देंगे बत्तियाँ खुद आगे बढ़ के ।
जो समझते हैं हमें उल्फ़त हो गयी उनसे ,
अब वही समझाएं हमें किस सरहद ने रोका है ।
हमारा हक़ थी मोहब्बत उनकी ,
जान के बदले में हमने दिल उनका हथियाया है ।
जोश ए उल्फ़त में ताक़तें आज़माते नहीं ,
काँच के दिल हैं टूट जाएँ तो फिर जुड़ पाते नहीं ।
साख फूल पत्तों का दरख़्त बनता है ,
ख़ाली बीज का कोई वज़ूद ही नहीं होता ।
खार तन से लिपटे हो लाख सही ,
गुलों के रंग ओ बू से अंजुमन क्या गुलज़ार नहीं ।
अब से पहले तू इतना हसीन तो न था ,
जा किसी का मेहबूब बन जा अबके अभी ।
किस्से कहानियों में बस ज़िक्र ए हया होता है ,
या वाक़ई चाँदनी रात में भी चाँद तारों को शर्म आती है ।
उम्र से मत आँको ताक़तें उन बाज़ुओं की ,
देश हित में जिन्होंने सीने पर गोलियाँ खाई हैं ।
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