शब ए माहताब देखा था आफ़ताबी हुश्न तेरा romantic shayari ,
शब ए माहताब देखा था आफ़ताबी हुश्न तेरा,
फिर सारी रात शबनम बनकर बरस गयी ।
आज ठहरा है मौसम भी तेरे छज्जे पर ,
रात की काली घटा तेरे कूचे में आकर सिमट सी गयी ।
वादि ये बहार में खारों ने हिफाज़त का ज़िम्मा क्या लिया ,
हर फूल गुल ए गुलज़ार हुआ हर बात क़यामत सी हो गयी ।
यूँ ही नहीं की बस वो अदा से कमसिन थी,
दिल ए नादां को मासूमियत पर मर मिटने की सजा मिलनी चाहिए।
तेरी हर बात में रंगीनी झलकती है सुर्खाब ख्यालों वाली ,
तेरी तबीयत से फिर गुलनार चटकना चाहिए ।
हर बात धरातल हो ज़रूरी तो नहीं ,
कुछ ख्वाब ख्यालों के परे भी उड़ना चाहिए ।
जुदा है रंग ओ बू से फितरत तेरी ,
तेरा अंदाज़ ए बयान अंजुमन में हर गुल से खुशनुमा है ।
अलफ़ाज़ का जादू है न लफ़्ज़ों में दुआ है,
तेरी मेरी मोहब्बत बस ताज़ा हवा है ।
तुम अफ्शांनो में बयान कर दो अगर,
हम हाल ए दिल की नज़ाक़त को नज़रों से समझ लेंगे ।
चल तुझे ख्वाबों में जादू नगरी की सैर कराऊँ,
चुटकी में गायब होने की पुड़िया तू मैं बन जाऊं ।
ना आग ना धुंआ सब बुझा बुझा सा है,
तेरे मेरे दरमियान तिलिश्म ए इश्क़ रवां रवां सा है ।
लुत्फ़ आएगा रश्म ए उल्फत में ,
दिल की हांडी में इश्क़ पकने दो।
कमाल का ज़ायका है इश्क़ तल्ख़ भी है शहद भी ,
लोगों में ख़ुलूस देखा है निम्बोली चासनी में डुबोकर चाट जाने का ।
जहां में सबसे पहले मुकम्मल क्या था ,
हिन्दू और मुसलमान से पहले आदम सूरत क्या थी ।
जाने कितने मर्तबा उजड़ा है शहर ग़ालिब का ,
जाने कितने मर्तबा शब ए बज़्म में आबाद मिला ।
शहर भर के बेरोज़गारों ने तदबीर मुकम्मल की है ,
पिछले जुम्मे से अगले जुम्मे तक चाँद में मेहबूब को तजबीजेंगे ।
बग़ावत तो समूचे आस्मां से है ,
कहीं पानी के लाले हैं कहीं डुबो कर के जान लेता है ।
नीतिगत तर्क़ संगत कुछ नहीं,
मौजूदा हालात में बस पराया माल अपना है ।
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आस्मां भी मुकम्मल है दुआएं भी मुकम्मल हैं,
किसी के हिस्से में आस्मां तो किसी के हिस्से में खुद चाँद आ गया ।
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