सलीके से पेश आते थे औक़ात बढ़ने से पहले dard shayari ,

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सलीके से पेश आते थे औक़ात बढ़ने से पहले dard shayari ,
सलीके से पेश आते थे औक़ात बढ़ने से पहले dard shayari ,

सलीके से पेश आते थे औक़ात बढ़ने से पहले dard shayari ,

सलीके से पेश आते थे औक़ात बढ़ने से पहले ,

ख़ैरात में मिली मोहब्बत से ओहदा बदल गया

 

इश्क़ की ख़ातिर पर्दा नशीनों से भी गुनाह होते हैं ,

जिस्म लुटते हैं रूहें तबाह होती हैं ।

 

सियासियों की फ़िराक़ रखते हो ,

कभी मज़हब पर तो कभी अवाम ए क़ौम पर आमादा हो

 

अना जिस्मो की कैसी ,

दाम ऊँचे हो सियासतों में रूहों के मज़हब भी बदल जाते हैं

dard shayari 

तेरे जैसा मुजस्सिम तरास सकता हो ,

ऐसा कारीगर तलास करता हूँ ।

 

एक दो होते तो दिखाते तुमको ,

सारा का सारा दिल ज़ख्मो से लबरेज़ रहा ।

 

एक दो होते तो गिला सिकवा होता ,

जितने मेहबूब मिले सबके सब संगदिल सनम ही मिले ।

 

मज़हब मत पूछो मरीज़ ए दाना से ,

जिस दर पर मिली रोटी वहीँ बैठ कर नमाज़ पढ़ लिए

 

वजूद कुछ भी नहीं मिटटी के पुतले का दानिश,

बस जिस्मो की गणना से इंसान की औक़ात पता चलती है

 

जवानी कटी अगर ग़म ए मुफ़लिश की अकाल में ,

जिस्म की रंगत निखर रही है फिर उम्र ए दराज़ में ।

 

झुकी पलकों से तहज़ीब नज़र आती थी ,

अब से पहले रुख़ तेरा इतना बेहया तो ना था ।

 

इश्क़ की ख़ातिर पर्दा नशीनों से भी गुनाह होते हैं ,

जिस्म लुटते हैं रूहें तबाह होती हैं ।

 

लोग मरते रहे जिस्म जलता रहा ,

सियासत के नाम पर अवाम लुटता रहा ।

 

सम्हलते नहीं हैं उड़ते फिरते सरारे दिलों से ,

इन शरबती आँखों से कहो नज़रें जुम्बिश ही छोड़ दें ।

 

तूने अपनी नाकों की नथ के ऊपर ,

जाने कितने नख़रे उठा के रखे हैं ।

 

जिस्म ढल गया तो क्या ,

इश्क़ की उम्रें तो अभी बाकी हैं ।

 

हुश्न के समंदर में भर गए सारे ,

जितने मोती फलक से टपके थे शबनम बनकर

image shayari 

रूह ज़ार ज़ार जिस्म रेज़ा रेज़ा ,

जान हम तुम पर अब भी ऐतबार बहुत करते हैं ।

 

ज़माना क्या नमाज़ें अदा करेगा हमें ,

जब हम खुद के ही ख़ुदा हो कर के निकले ।

pix taken by google