सियासतदानों ने कितनी रियासतें बदली romantic shayari,
सियासतदानों ने कितनी रियासतें बदली ,
ये आसमानी परिंदे हैं घर का पता ढूढ़ लेते हैं ।
जमींदोह रखोगे कब तलक इल्म ए मज़हब के नाम पर ,
पर परिंदों के लगा दो फिर परवाज़ देख लो ।
कभी किसी गुल के रंग ओ बू को बाँट सकते हो ,
पूछना है तो किसी बेज़बान से उसका मज़हब पूछो ।
एक किस्सा सुना था शहर ए वेहसत का हमने ,
नाम मज़हब का लगा कर परिंदों के पर काट दिए ।
परिंदे निकले थे कुछ चैन ओ अमन के जज़ीरे से ,
सुना है आसमाँ की बुलंदियों पर ख़ुदा की रहमत बरसती है ।
परों पर सुनहरे वर्क़ करके ,
मेरा मुंसिफ ही कहता है चलो उड़ कर बताओ ।
लूट गए वहसी परिंदे शाही मीनारों को ,
जो बच गए ज़िंदा दर ओ दीवारों से लुक़मान को तकते हैं ।
सरहदों की सारी हदें तोड़ने वाले ,
परिंदे मज़हबी बेड़ियों में लाचार बैठे हैं ।
दिल के जज़्बों को हर्फ़ दर हर्फ़ पन्नो में उरेख लेता हूँ ,
बेज़बानी में परवाज़ ए परिंदों को नया आगाज़ देता हूँ ।
दिल फ़िरक़ा परस्ती में उतरा है आजकल ,
कहीं पर आहें भरता है कहीं की बात करता है ।
सात समंदर पार भी घर मिलते नहीं ,
कुछ परिंदे मोहब्बतों की तलास में बहुत दूर निकल आये हैं ।
ये मज़हबी इल्म है या खाली ज्ञान की बातें ,
सुना है इन महीनों में ख़ुदा की रहमत बरसती है ।
फ़लक़ से ज़मीन तक हर शख़्स हर सै में ज़र्रे ज़र्रे में तेरी रहमत बरसती है ,
तू मुझमें है मौजूद फिर भी न जाने किसकी आस रहती है ।
गर्दिश ए वक़्त ग़र आया है तो टल जायेगा, र
हमतें उसकी हैं हर सै में तू यक़ीन तो कर ।
जाने क्यों अंजुमन में फिरता है दिल घटा बनकर ,
गोया सब्ज़ बागों के अलावा फ़िज़ा में खिज़ा भी है ।
मिजाज़ ए मौसम और दिलों के तर्क़ ओ ताल्लुक़ ,
जब जब बारिश आई तब तब हम रोये ।
हम ख़्यालों से मिटा देंगे उन्हें,
गोया वो दर ओ दीवारों पर कोरे हर्फ़ लिखना बन्द तो कर दें ।
ज़रीवाले ख़्वाबों से पोसीदा थी रातें ,
चाँद तारों के दरमियाँ हादसा कुछ और हुआ होता ।
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