सुबह की गुनगुनाती धूप रात के तकिये तले अँधेरा ओढ़ कर सो जाती है hindu hindi shayari ,
सुबह की गुनगुनाती धूप रात के तकिये तले अँधेरा ओढ़ कर सो जाती है ,
फिर सुबह होने से पहले कुनमुनाती पौफ़टे मुंडेर पर आजाती है ।
थक कर कभी सुस्ताती नहीं,
हर दौर ए उम्र में हौसला पुरज़ोर है ।
आगवानी है फ़ितरत में सबकी न हवा पानी का इसपर रोक है ,
रात की कालिख़ हो गहरी घुप अँधेरी इसको न कोई ख़ौफ़ है ।
हो रहा गतिमान क्षण प्रतिक्षण ये नवयौवन चढ़ रही है ,
डूबते सूरज की लय पर श्रृंगार धरा का कर रही ।
फैली जब चहुँओर संध्या हैं दुखी बाग़ उपवन खग मृगा,
अश्रु पूरित रुधिर कण्ठ से कर रहे हैं सब विदा ।
है कोई दम ख़म भरा जो भोर से पहले निकले कहीं ,
सब करेंगे इंतज़ार इसका चाहे किसी को जाना हो कहीं ।
सबके सब दुबके पड़े हैं खामोश धरा की धीज पर ,
नाग सुर गंधर्भ किन्नर सर धुनें हैं खीझ कर ।
ठण्ड में कुम्हलाई कोपल और हरे भरे बृक्ष सभी ,
गुनगुनाती धूप में महकेगी कलियाँ और फूल सभी अभी ।
घोसलों में मिल रहा बच्चों को माँ बाप का बराबर स्नेह है ,
कौन है किसका मुख़बिर सबमे बराबर प्रेम है ।
रात की सरगोशियों की गिरह खोलेगी सुरज की प्रथम किरणे फिर से आज ,
उठ रहा है धीरे धीरे सूरज हो रहे सब बेनक़ाब।
रंगत निखर रही है सूरज की लालिमा बिखर रही है ,
लो फिर लौट आई गुनगुनाती धूप ज़मीन को चूमती गेहूं बाली उठ गयी और फसल लहलहा गयी ।
अंजुमन में ओश की बूंदों से खेलती घांस के दूबों की पत्तियाँ ,
उठ खड़ी हैरान हैं सब गुम कहाँ हो गयी शबनमी सहेलियां ।
रसापान और परपरागण भंवरों का कारोबार है ,
बाग़ में झूमती कलियों को छेड़े कोई फूलों को भी कहाँ ऐतराज़ है ।
सबके सब हैं मस्त अपने रोज़मर्रा के काम काज में ,
दे रही अवकाश फिर से करके संध्या एक रात्रि का विश्राम है।
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