सूद समेत ज़िन्दगी उधार लेता है alfaaz shayari,
सूद समेत ज़िन्दगी उधार लेता है ,
मिटटी की ख़ातिर किसान मिटटी में दम तोड़ देता है ।
ताज ओ तख़्त की ख़्वाहिश किसे ,
न्याय शिक्षा चिकित्सा के मौलिक अधिकार तो मुफ्त मिलने चाहिए ।
अवाम ए आम की आवाज़ ज़हन में घुट गयी ,
डॉक्टर इंजीनियर की फ़र्ज़ी डिग्रियां फुटपाथ पर कौड़ी के दामो बिक रही ।
जू अगर रेंगे नहीं अब भी किसी सरकार के ,
बोरिया बिस्तर समेटे और चुप चाप निकले सरहद के पार।
अंजाम ए इश्क़ से बेपरवाह आग़ाज़ ए इश्क़ हुआ करते हैं ,
शबनमी शाम तले आफताब ए हुश्न की ख़ातिर कई सूरज जला करते हैं ।
ये रात एक जवाब की तलबग़ार लगती है ,
अंजाम ए इश्क़ से बेपरवाह आग़ाज़ ए उल्फत पर ऐतबार करती है ।
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दिल के आइना ए अक़्स में जब भी तुमको देखा,
आग़ाज़ ए इश्क़ को रक़्स करते देखा ।
ये ज़ौक़ ए आशिक़ी को शायरी न समझ ,
गोया अंजाम ए वफ़ा की परवाह करता तो आग़ाज़ ए मोहब्बत ही न करता ।
ख्याल ए क़ैफ़ियत की ख़ातिर ,
वस्ल की रात को आबाद किया तेरे ख़्वाबों की ख़ातिर ।
हर रात का मुक़म्मल एक फ़लसफ़ा रहा ,
जुस्तजू ए विसाल ए यार क़ैफ़ियत ए मुजस्सिमा रहा ।
इश्क़ ए क़ैफ़ियत को सम्हाल के रखा ,
गोया कितने मौज ए बारिशों में न भीगे होंगे हम ।
क़ैफ़ियत ए इश्क़ में न गुनाह हो जाए ,
जिगर में दीदा ए चाँद की चाहत रूबरू ए कह न चाँद कहीं मिल जाए ।
वस्ल की रात फ़िज़ा भी है खुर्रम ,
गीत गुंचा गुंचा , चाँद तारों में घुली है सरगम ।
आज की रात चाँद तारों में जश्न है वसीअ ,
शब् ए फुरक़त में वो नूर ए नज़र विसाल ए यार की खातिर बेक़रार हो जैसे ।
जश्न ए ग़ालिब साद ओ ग़म शायरी ओ सुख़न,
सब क़ैफ़ियत ए मिजाज़ ए मस्ती के फन ।
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