हर्फ़ दर हर्फ़ ज़हन को कागजों में उरेख रखा है urdu shayari hindi ,
हर्फ़ दर हर्फ़ ज़हन को कागजों में उरेख रखा है ,
ज़िल्द से कोई क़िताब ए दिल का खरीदार नहीं ।
वो बुतों पर इतिहास बनाने की बात करता है ,
मैं हर ज़बान पर तहरीर ए मोहब्बत लिखना चाहता हूँ ।
मीलों मील फैले नदी के दो पाट पर तैरती कुछ तितलियाँ ,
कुछ को मंज़िल ज्ञात है कुछ मृत्यु से अज्ञात हैं ।
वो जो नदियों को गुनगुनाते थे ,
आज भी साहिलों के सुर ताल से अनभिज्ञ हैं ।
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बेबाक ताक लेती है निश्छल निर्मल नदी,
बिना नज़रों के मन झाँक लेती है ।
वो पर्वतों को तोड़ झरनों में उतर जाती है ,
आ गयी जो वेग में भूल छमा शीलता प्रलय में बदल जाती है ।
कुछ तबीयत भी नासाज़ रहा करती है ,
कुछ दिल का साद ओ ग़म से वास्ता भी नहीं पड़ता ।
लिखेगे कभी फुर्सत में हाल ए दिल अपना ,
अभी नींद में कुछ सपनो के मोती पिरोने दो ।
अभी तो बैठो की शाम ढलने दो ,
अभी तो सिन्दूरी आसमान पर घटा बनके छाई है ।
रात का जश्न चलेगा चलने दो ,
दिल को टुकड़ों में आज जलने दो ।
हम दिल के टुकड़ों को हाँथ में लेकर ,
शब् ए माहताब आहें भरते रहे ।
हुश्न की तारीफ़ करना भी कोई काम है ,
जो समझते हैं बेरोज़गार हमें उन्हें ही बस काम काजी रहने दो ।
सुकून ए रूह का इंतज़ाम नहीं होता ,
गोया जब तक ज़माने में इश्क़ बदनाम नहीं होता ।
क़र्ज़ उतरे तो सुकून मिल जाए ,
क़ब्र तक बोझ तेरे नाम का उठाया नहीं जाता ।
मर गए लैला मजनू और सीरी फ़रहाद मरे ,
न मिला सुकून ए रूह मोहब्बत को ज़माने भर की बर्बादियों के बाद ।
थमते नहीं किस्से महफ़िल ए रानाईयों के शहर में रात देर तलक ,
वीरानियों में भी शहनाईयाँ गूँजती रहती हैं ।
देर रात तक चलता है शेर ओ शायरी का दौर ,
दौर ए मुफ्लिशी में भी शहर बेफिक्र कभी होता नहीं ।
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