ख़ाक सारी है बहुत इश्क़ में उतर के तो देख bewafa shayari ,
ख़ाक सारी है बहुत इश्क़ में उतर के तो देख ,
यूँ उठते धुएं को देख कर दबी चिंगारी का अंदाज़ा लगाया नहीं जाता ।
उफ़ जान न ले ले कहीं ये बेरुख़ी तेरी ,
आँखों से बहता काजल और जलवों से उड़ती ज़ुल्फें तेरी ।
दिन में सोके रात भर आस्मां के तारे चुरायेंगे ,
सोने वालों को ख़्वाब देखने दो हम उनके चाँद को भी अपना बनाएंगे ।
ग़ालिब हुआ है कोई , कोई शायर हुआ ,
सज़दे किये किसी ने कोई इश्क़ में फ़नाह हुआ ।
ग़ालिब शराफ़त में मरे मोहल्ले की लड़कियाँ दिन रात आहें भरे ,
इसे आपा उसे ख़ातून किसी को मोहतरमा सलाम करके हज़ को चले ।
बड़े गिले शिकवे जो तह ए दिल में पाल रखे हैं ,
महफ़िल में कभी हंस कर ही कह देते हाल ए दिल सुनाओ यारों ।
आँख लग कर भी नींद आती नहीं ,
हिज्र की रात का सीने में वज़न ज़्यादा है ।
मुस्कुरा कर देख ही लिए थे तो ,
यूँ पलकें झुका कर दाँतों तले होंठ दबाना तो न था ।
मन भटकता फिरता है चाँद के पीछे ध्रुव तारा बन कर ,
गुनगुनाता रहता है यादों का भंवर एक तारा बनकर ।
बस मौसम की नज़ाक़त का असर है हरसू ,
मोटी खाल वाले भी कभी ज़ौक़ ए इश्क़ किया करते हैं ।
ख़ुदाया ख़ैर करे उसका जिसका तू मेहबूब बने ,
हमे तो जब भी मिले तुम बहुत खूब मिले ।
सर पे बाँधे हो कफ़न लब पर मेहबूब का नाम हो सजाये ,
हाँथो में मोहब्बत का परचम लहराए कोई तब इश्क़ के समर में कूंद जाए ।
बेहयाई के सबब हैं ये दाग़,
राज़ गहरे है दिल की गर्तों में छुपा रखे हैं ये दाग़ ।
पीर फ़क़ीर बड़े बड़े साधु सन्त बने ,
बने महंत बड़े इश्क़ में मलंग बनने के बाद ।
तन बहे गंगा की लहरों में साँस निकलने से पहले ,
भरें पेट जलचर नभचर मांस से मेरे प्राण निकलने से पहले ।
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