ग़म ए रूख़्सती मिली तुझसे रुख़्सत होके dard shayari,
ग़म ए रूख़्सती मिली तुझसे रुख़्सत होके ,
इस कदर मेरे ज़मीर पर बोझ बन पड़ी थी मोहब्बत तेरी ।
कभी फुर्सत मिले तो मेरे कूचे का भी रुख़ कर लेना ,
गली के नुक्कड़ में मिलेंगे हम आज भी दिल सुलगाये हुए ।
तक़ल्लुफ़ न तू कर कोई ज़हमत तू न उठा ,
नखरे उठाये हैं हमने शब् ए माहताब के दीदा ए यार हो तो उठा लेंगे मुखड़ा तेरा।
अफ्सुर्दा हुआ अबसार से टपका नहीं आंसू ,
रुख़्सत तेरी दिल का डाबर सुखा गयी ।
जाने क्यों ज़माना शैदाई बना है इश्क़ वालों के लिए ,
गोया हमने बाद ए रुख़्सत के आँसू बहाते देखा है लोगों को ।
रुख़्सत ए यार बेसबब न रहा ,
कुछ खूँ में गड़बड़ी कुछ ज़माने के थे पेचीदा मिजाज़ ।
दिलों की ख़ुशफ़हमी भी जाते जाते ही जाती है ,
गोया ग़लतफहमी सी ये ख़ुशनशीब नहीं ।
आक़िल हुयी रुख़्सत तेरे आगोश में आके ,
अज़रदाह हुआ मन तुझसे रुख़्सत होके ।
दुल्हन बन डोली चढ़ ससुराल चली ,
रुख़्सत का वक़्त आ गया बचपन को अलविदा कह दो ।
बड़ी बेरुख़ी से रूख़्सती की हमने मोहब्बतों की ,
अभी तन्हा खड़े हैं लाख मोहब्बतों को रुख़्सत करके ।
हर एक आशिक़ का हाल एक सा निकला ,
कहीं क़फ़न में लिपटी लाश कोई सर पर बांधे क़फ़न निकला ।
आईने को दोष दूं या तक़दीर से करूँ गिला ,
कुछ लोग शैदाई मिले कुछ वो था बेवफ़ा ।
फजूलखर्ची है इश्क़ दिल की महज़ कुछ भी नहीं ,
दो चार सिक्कों सी खनकती यादें हो खलीसे में और कुछ भी नहीं ।
ये जीना भी कोई जीना है बस यादों का बवंडर है ,
न दूर तलक साहिल बस मौज ए समंदर है ।
यहाँ भी आख़िर याद आ ही गयी उसकी ,
कमबख्त लाख इश्क़ से तौबा करने के बाद ।
इश्क़ का बादल हूँ दिल जो फटा तो तबाही मचा जाऊँगा ,
ग़रूर प्यास का छोड़ दे रूह भी पानी में डुबा जाऊँगा ।
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