ख़ुदा ख़ैर करे रश्म ए उल्फ़त के मारों का good morning shayari,
ख़ुदा ख़ैर करे रश्म ए उल्फ़त के मारों का ,
आब ओ हवा से परहेज़ करते हैं अब्रू ए समसीर सीधा दिल में लेते हैं ।
है अधूरा तू भी क्या इल्ज़ाम लगा दूँ तुझ पर ,
मैं गुनहगार हूँ खुद अपने तबाह ए नशेमन का साहेब ।
ता उम्र का एक बोझ है मोहब्बत तेरी ,
कुछ अश्क़ छलक जाएँ तो ज़मीर हल्का हो।
मुर्दों के शहर में ज़िंदा लोगों की उम्मीद लगाए बैठे हो ,
खुद घोलते हो ज़हर फ़िज़ाओं में गोया हवाओं में सांस लेने की बात किया करते हो ।
रगों में सिहरन सी दौड़ गयी ,
क्या कहीं कोई ख़ौफ़ज़दा है हमवतन अपना ।
वादा किया था बस चंद लम्हों की मेज़बानी का ,
गोया उम्र भर का खुद के नशेमन में मेहमान बना दिया हमको ।
क़ायल है मोहब्बत मेरी उसकी हुनरमंदी की आज भी ,
दिल के घायल परिंदे को जो उड़ना सिखा गया ।
क़ाफ़िलों में बँट गए हैं कुनबे सारे ,
अब इस जुलुस ए जलसा की रहनुमाई करे कौन खुदा जाने ।
गैरों ने नहीं तो अपनों ने किया होगा ,
किसी न किसी ने तो मेरा नशेमन तबाह किया होगा ।
खुद किराए के मकान में था हाल ए मुक़ाम अपना ,
किसी न किसी ने तो किराए के मकान को भी अपना मकान किया होगा ।
बाद ए रुख़सत के कितना सुकून है खार भरी आँखों में ,
गुबार ए ग़म के अश्क़ों ने दिल में कोहराम मचा रखा था ।
बाद ए रुख़सत के तेरे तेरी यादें तो हैं ,
तू अलविदा कहकर भी मुझसे खाली हाँथ रहा ।
ग़म ए उल्फत में बस ग़ालिब का शेर ओ सुखन याद आता है ,
उतार कर नमूना ए नाचीजों को क्यों भेजा देना ही भूल जाता है ।
ठकुरसुहाती कहो या शेख़चिल्ली के समझो ख़्वाब ,
हर कोई अपनी मौज ए बहारा का है बेताज़ बादशाह ।
लाख होंगे ज़माने में महले दो महले यारों ,
मेरे सर पर खपरैल की छप्पर है क्या किसी ज़न्नत से कम है ।
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