अदाएँ हिमाक़ती उस पर नज़रों का तग़ाफ़ुल 2line attitude shayari,
अदाएँ हिमाक़ती उस पर नज़रों का तग़ाफ़ुल,
गोया दिल से प्यारे नगद के शौक़ीन लगते हो ।
रूबरू ए इश्क़ क़सीदे कसते हैं लोग ,
पीठ पीछे से यहां बस फ़ब्तियाँ निकलती हैं ।
सेहरा से गुज़रा हर आदम ए अक़्स इंसान ही हो ज़रूरी तो नहीं,
नक़ाबों में फरेबी भी हुआ करते हैं ।
मानो न मानो बावज़ूद ए एहतियातन के ,
हादसा ए इश्क़ हो ही जाया करता है ।
नफरतों में उम्रें ज़ाया की बहुत ,
दो चार कदम मोहब्बतों में साथ चल कर देखो ।
शहर ए दस्तूर था जलाने का ,
दिल में मोहब्बत भर के बस हवा कर दी ।
रूबरू हो तो ज़माल ए यार ही हो ,
सुरख़ाब ख़्याली से पेट भरता नहीं ।
चाक ए जिगर से हाल ए बयानी होती है अक्सर ,
अस्तर लगा के क्यों न दिल का रफू हो जाये ।
उफ़ ये उम्र ए दराज़ उस पर ख़्याल ए रानाई ,
दुखती कमर से मोहब्बत के सगूफे उठाये जाते नहीं ।
शहर भर के समंदर को जोत कर मैं अकेला पिरो लाया हूँ ,
एक मंसूबे में मोतियों के सारे खार उठा लाया हूँ ।
रफ़्ता रफ़्ता उम्रें गुज़र रही हैं बस,
एक तन्हा रात का सवाल आज भी है ।
अतीत की खींची लकीरों में सब यथार्थ न रहा होगा ,
कुछ एक फ़लसफ़े कुछ एक लतीफे कुछ ज़ुमलों का दौर भी चला होगा ।
गुज़र गए सादादिली में सारे लम्हे,
एक दो लम्हों में ज़िन्दगी सारी नागवारा गुज़री ।
वो गुज़ारा साथ पल भर का लम्हा ,
ता उम्र साथ निभाता चला गया ।
दावों में खुद के मत्थे उठाये जनाज़े सारे ,
हकीकत में एक काँधे के लिए लोग जंगरचोर बनते हैं ।
एक एक पत्थर में तहरीर ए वक़्त की बयानी थी ,
ऊँचे मचान वालों ने ख़ुत्बा बदल दिया ।
शहर के पत्थरों में दबे हैं जाने .
कितने बेज़बान मलबे बन कर के ।
डर था जिनको ख़ुदा न हो जाएँ ,
बुत बने बैठे रहें मैकदों से न निकलें बेख़्याली में न कोई गुनाह हो जाये ।
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