सिझती आँखें ये कहती हैं dosti shayari ,
सिझती आँखें ये कहती हैं ,
अक्सर मुझसे मैं जब तन्हा होता हूँ ।
वक़्त का मरहम हर ज़ख्म भर देता है ,
मगर जो सरहदों का ज़ख्म है भरने में एक अरसा बीता है ।
बीता है तिल तिल जीता है तिल तिल,
वो वक़्त भी जाने कहाँ ठहरा है पलछिन ।
क्यों जीता हूँ गिन गिन ,
सिसकती सी आहों में अब भी सीलन है ।
कुछ अपनों को खोने की कुछ अपनों को पाने की ,
रुलाता है कम धुआँ सिगड़ी का चूल्हे का ।
रुलाती है याद अक्सर आँच बनकर साँझे चूल्हे की ,
है गुज़रा वक़्त इक लम्हे में ठहरा सा ।
जिन भूरी आँखों ने साथ बचपन में खेला था ,
उन बालों की सफेदी बिछड़े साथी से मिलने की आस रखती है ।
आस रहती होगी बागों में साथ झूले की ,
तीज त्योहारों की भी मिठास रहती है ।
है फ़ासला बहुत दूर सही ,
है दीवारें बड़ी मज़बूत मज़बूत सही ।
बस ख़्वाबों ख्यालों में हर रोज़ मिलते हैं ,
जो अपने हैं वो अक्सर मिल नहीं पाते ।
दिलों में रहने वाले दोस्त ,
यहां खुल खुल के मिलते हैं ।
अब मिलना है नहीं मिलना है ,
राख में दबी चिंगारी से बस फूल खिलना है ।
फूल भी ऐसे जिनमें रंग ओ बू हो ,
अपने वतन की मिटटी सबसे ख़ूबरू हो ।
हूबहू होगा वहाँ भी मीठे पानी का झरना ,
नदियाँ हवा परिंदों का साथ साथ चलना ।
फ़ासला है बहुत दूर का साथ चलने दो ,
भुला कर रंजिशों को दिलों के ग़ुल को खिलने दो ।
साँस लेने दो ज़मीन को मोहब्बतों की शबनम गिराओ ,
अर्क पियो मकरंद गुल के ।
मज़े से झूमो नाचो गाओ ,
मैं पिरो लाया हूँ पंक्तियों में टूटते लम्हे ।
कुछ अधूरे कुछ छूटे लम्हे ,
मैं उन्ही यादों में अक्सर डूब जाता हूँ ।
और जब निकलता हूँ दरिया से,
दूर कहीं सेहरा में ख़ुद को तन्हा पाता हूँ ।
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