आदम ए अना ही जब आबरू बन जाती है dard shayari,
आदम ए अना ही जब आबरू बन जाती है ,
जिस्म के साथ ज़िद भी ख़ाक की गर्त में मिल जाती है ।
खेत खलिहान घर बार तक बिक जाता है ,
बेटियों की शादियाँ इतनी आसान नहीं होती ।
इज़्ज़तदारों के बीच आबरू महफूज़ नहीं रखी,
शहर भर के ख़रीदार कोठों पर नीलाम पड़े हैं ।
तेरी आबरू आबरू थी गोया हमारी आबरू कुछ नहीं ,
यूँ सरे राह उतारी थी जैसे ख़ाक मिटटी से ज़्यादा कुछ नहीं ।
बाज़ आता नहीं दुश्मन हरक़त ए नापाक़ से हरगिज़ ,
सिपाही मूँद कर आँखें धरा की लुटती आबरू कैसे देखता होगा ।
सीने में चल जाता या सीधा जिगर में उतर जाता ,
नस्तर धरती की आबरू पर चल जाए हमें बर्दास्त नहीं ।
अगर वो एक तो ये दस गिराते हैं ,
आबरू ए वतन की ख़ातिर सिपाही जान लुटाते हैं ।
बेचैन हैं रूहें साँसे ठिठुर रहीं ,
मादर ए वतन की शान पर माँ के लालों का कलेजा हुंकार भरता है ।
दर्द भी इश्क़ दवा भी इश्क़ ,
फिर तो मरीज़ ए दाना की बीमारी लाइलाज़ है मोहसिन ।
उफ़ बेहयाओं के मुँह शराफ़त की बातें ,
नज़रों की ज़ुम्बिश से आबरू छीन लेते हैं ।
बाप दादा की दौलत जितने दिन पूजी बेचा खाया ,
अब नशे की ख़ातिर बीवी बच्चों का कारोबार करता है ।
पैसों में आबरू तुलती है साहेब ,
रसूकदारों की इज़्ज़त बहुत महँगी नीलाम होती है ।
मज़बूरिया उतार देती है कपडे भी ,
कौन ख़ुशी से दहलीज़ के पार जाता है ।
जिनके चेहरों से कभी हिज़ाब नहीं हटता था ,
उनके लिबास सरे बाजार बिकते हैं ।
वक़्त बदलता गया आबरू के मायने बदलते गए ,
जिस्म से उतरते लिबास को फैशन समझते गए ।
समझौतों के दम पर कभी इश्क़ नहीं होता ,
इश्क़ के नाम पर बस आरज़ू हर रोज़ लुटती है ।
हमको ज़िन्दगी तबाह करने की ज़िद है ,
लोग कहते हैं भईपहा सम्हाल लो ।
बड़ा दिल में दर्द होता है रह रह कर ,
ये इश्क़ ए बिमारी है लाइलाज़ नहीं मोहसिन ।
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