खादी के कुर्ते को लत्ता बना के रख दिया funny shayari,
खादी के कुर्ते को लत्ता बना के रख दिया ,
बेशर्म सियासियों ने गाँधी के चरखे का बेड़ागर्क करके रख दिया ।
हम ही नहीं थे ख़ाली बेगैरतमंद वाले ,
उसने भी दिल ए दरिया में कई घड़ियाल थे उतारे ।
बुझती होगी प्यास ज़र्द पत्तों की ,
सावन की झड़ी से भी दिल ताज़ा हरा नहीं होता ।
कहीं बिजली चमकती है कहीं और असर होता है ,
भीगी भीगी बूँदों का तीखा तीखा ज़हर होता है ।
होते होंगे जहाँ में जश्न ए रानाइयों के तलबगार ,
हमें अपने ग़म में ही मुतमईन रहने दो ।
खुश हो लो अपनी खुशियों से ,
मेरे हिस्से में तो मेरे ग़म भी नहीं है ।
अधर प्यासे नयनो में जलन सी है ,
घटा सावन की पवन के संग ज्वलनशील लगती है ।
रंग अंतरंग अंग प्रत्यंग ,
मन अंतर्मन प्रेम रस से सराबोर ।
कभी सुनी है बारिश की अटपटी बातें ,
बूँदों की टिप टिप में भी गीत होता है ।
दाग़ जितने थे धुल गए सारे ,
सावन का रंग सबसे गहरा होता है ।
शर्म आती है अगर इज़हार ए मोहब्बत में तुमको ,
दबी ज़बान में ही इश्क़ ए क़बूल नामा भर दो ।
ऐसा नहीं है की जहाँ में आदम ही नहीं है ,
शर्म के मारे इंसान, इंसान से बस मिलता नहीं है ।
मुँह उठाये बड़ी बेशर्मी से चली आती है ,
हर रात के बाद सुबह ख़ैरात में मिलती हो जैसे ।
जलवे बदल गए नज़ाकतें बदल गयीं ,
उम्र के इस पड़ाव में ऐ मेरी जान ए ग़ज़ल सरगमें बदल गयीं ।
जितने रिश्ते थे शर्म ओ हया के धो के पीता गया ,
बेहयाओं के बाज़ार में आदम ए सूरत बेलिबास खड़ा है ।
शहर ए आदम से क़ुरबानी की रश्म जाती रही ,
हमसे भी रोज़ अब इश्क़ में हलाल न हुआ जायेगा ।
बाक़ायदा वो चस्म ए हरम में जलवा फरोश हैं ,
लब रह के भी ख़ामोश झुकी पलकों में रोस है ।
ज़ुल्फ़ों का पर्दा माथे पर सिकन , आँखों में हया होठों पर गिला ,
आज फिर इज़हार ए उल्फ़त में थकन होने को है ।
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