सियासी सपोले कम पड़ गए आदम ए बहसत में funny shayari,

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सियासी सपोले कम पड़ गए आदम ए बहसत में funny shayari,
सियासी सपोले कम पड़ गए आदम ए बहसत में funny shayari,

सपोला समझकर छोड़ देते हैं funny shayari ,

सपोला समझकर छोड़ देते हैं लोग,

इसीलिए सांप से ज़्यादा ज़हरीले लगते हैं लोग

 

उस नादाँ को समझाएं कैसे ,

नागपंचमी है बच्चों को दूध पिलायें कैसे

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अपनी ख़ुशी का सबब बस वही चेहरा था ,

जो ख़ुद के वास्ते कभी खुल के मुस्कुराया नहीं

 

इब्न ए इंसान के साथ ग़र फ़ितरत से भी आदम हो ,

गुंजाइस उसी की बढ़ती है सबसे पहले गुज़र जाने की ।

 

जश्न ए बरबादियाँ ही हों ग़र फ़ितरत जिसकी ,

महफ़िल ए रानाइयाँ कैसे लुभाये उसको

 

फ़िज़ा ने सरगोशियों में तेरा ज़िक़्र किया ,

क़ाफिरों ने बदली फ़ितरत मोहब्बतों के लतीफ़े पढ़ने लगे ।

 

झीनी झीनी सी हवा में भीनी भीनी तेरी खुश्बू ,

तू जो निकली बेनक़ाब सारे फ़िज़ा की फ़ितरत बदल गयी ।

 

फिरकापरस्तों की ऐसी जमघट है ,

ख़ाक मिटटी के पुतले को भी ख़ुदा कर दें

 

हर रात ख़्यालों में सजाता हूँ मुखड़ा तेरा ,

गोया सुबह की लाली तेरा चेहरा उतार देती है ।

 

दर्पण से निरीह कुछ नहीं ,

जिसे तुझसे अजीज़ कुछ नहीं ।

 

पलकों पर सजाये बैठे हैं मुखड़ा तेरा ,

दर्पण जो बिफ़र जाए ख़ुदा ख़ैर करे ।

 

तेरे ख़्वाबों को सजा के रखने की हो फ़ितरत जिनकी ,

उन आँखों को ख़्यालों में भी नींद कहाँ आती है ।

 

हर शक़्स है क़ातिल यहाँ हर चेहरे पर है नक़ाब ,

क़ातिलों के शहर में ख़ुद का क़ातिल पहचाने कैसे

 

जितने क़ातिल थे सनम खाने में मर गए सब के सब ,

सुना है हुश्न वालों ने दावत ए इश्क़ का नया नुस्खा निकाला है

 

इश्क़ का ज़ख्म देकर मरहम बताना शहर ए क़ातिल को ,

हुश्न वालों की रवायत सी हो गयी है अब ।

 

साँप इब्न ए इंसान से ज़्यादा भूखा तो न था ,

क्या वाक़ई पीता तो लोग दूध पिलाते उसको ।

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क़ातिलों के शहर में क़त्लगाह खुल रहे हैं ऐसे ,

फ़िराक ए क़ातिल से हुश्न वाले आगाह हो गए हो जैसे

pix taken by google